जीवन के है बस तीन
निशान रोटी, कपड़ा और मकान यानि की जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में मकान 33
प्रतिशत पर काबिज है। आदि मानव के सतत् सक्रिय मस्तिष्क की शाश्वत चिंतन
प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप ही विभिन्न प्रकार के विषयों
में उसका दैनिक अनुभव जन्य ज्ञान दिनोंदिन परिष्कृत परिमार्जित एवं
नैसर्गिंक अभिवृद्धि करता हुआ चन्द्रकालाओं की भाॅति अब तक प्रतिक्षण
प्रगतिशील रहा एवं रहेगा।
गुफाओं, कंदराओं में बैठे-बैठे आदि मानव ने
युगों-युगों तक चिंतन, मनन, विचार-विमर्श करता हुआ कई ठोस जीवनोपयोगी
वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने कुछ आवासीय नियम बनाये यहीं से प्रारम्भ हुए भाषा,
ज्योतिष, आयुर्वेद, संगीत, न्याय, नीति आदि विभिन्न विषयों के बीच नवग्रह
की अंगूठी के हीरे की भाॅति वास्तुशास्त्र ने भी अपना सम्मानीय स्थान
बनाया। भारतीय वास्तुशास्त्र ही विश्वविख्यात अध्यात्म का रूपान्तरित
नवीन दृष्टिकोण है। जो ज्योतिष शास्त्रका अभिन्न सहोदर है। आकाश, वायु,
जल, पृथ्वी और अग्नि इन पाॅच तत्वों से मनुष्य ही नहीं समस्त चराचरों का
निर्माण हुआ है। हर तत्व की प्रगति को गहनता से समझकर कोटि-कोटि वास्तु
सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए। समाज में हर तबके के व्यक्ति के लिए मकान की
लम्बाई, चैड़ाई, गहराई, ऊँचाई निकटवर्ती वनस्पति, पर्यावरण, देवस्थान,
मिट्टी का रंग, गंध विभिन्न कई बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए सतत्
अनुकरणीय सिद्धान्तों की रचनाएं की ताकि समाज में निम्न, मध्यम और उच्च सभी
वर्गों के व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए शतायु हो सके। यहां यह कहना न्याय संगत
नहीं होगा एवं सम्भव है कि वास्तु सिद्धान्तों से कौन व्यक्ति कितना
लाभान्वित हुआ और होगा। क्योंकि बुखार को नापने वाले थर्मामीटर की भाॅति
मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं, अनुभूतियों को नापने वाले उपकरण ना तो बने ना
बन सकेंगे। यह सुख-दुःख की अनुभूतियाॅ मूक पशु-पक्षियों की बहती हुई
अश्रुधारा एवं गूंगे के गुड़ की भाॅति अवर्णनीय शब्दातीत एवं कल्पनातीत है। पाश्चात्य के चमकीले, लुभावने 200 से अधिक टी.वी. चैनल्स के बीच आज का
मानव असमंजस्य के प्लेटफार्म से पिसलन भरी राहों पर सतरंगीय चश्मा लगाकर
ईष्या के पावं से अनंत प्रतिस्पर्धा में दौड़ता हुआ नीत नये टेंशन में
दिखाई देता है। यह सभी वास्तु, ज्योेतिष, अध्यात्म, धर्म, गीत, संगीत,
भोजन, निंद्रा आदि अनेक पहलुओं के समग्र असंतुलन का ही विकृत रूप है।
वास्तु के मूल सरल सिद्धान्तों को नव निर्माणाधीन भवनों में तो आसानी से
अपनाया जाना संभव है एवं निर्मित भवनों में आंशिक परिवर्तनोंपरान्त सुखद
परिणाम प्राप्त किये जा रहे है। वास्तु शास्त्र के मूल सिद्धान्तों का
सरलीकरण करते हुए जन सामान्य के लिए उसे रौचक, पठनीय एवं अनुकरणीय बनाने के
क्रम में कुण्डली काव्य में स्वरचित प्रथम पुस्तक ‘‘शिल्पकला पर 100
कुण्डलीयाॅ’’ जिसमें मूल सिद्धान्त कुण्डली काव्य में वर्णित है साथ ही
कुण्डलियां शब्दार्थ सरल व्याख्या एवं रौचक चित्रांकन युक्त 107 कविताओं की
हास्य शैली प्रधान शीघ्रातिशीघ्र बारम्बार स्वतः स्मरणीय पठनीय पुस्तक है।
वास्तुशास्त्री - कवि अमृत ‘वाणी’
E mail :-amritwani8@gmail.com
Website L- www.amritwani.co.in
Cont No. +91 9414735075
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