सप्ताह गुजारेंगे, जहाँ वे भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य के गुरुओं एवं प्रमुख लोक कलाकारों के कार्यक्रमों के साक्षी होंगे और उनके द्वारा करवाए जाने वाली कार्यशालाओं में भाग लेंगेप् इसके अलावा, वे कई क्षेत्रों के दिग्गजों द्वारा निर्देशित वार्ता, क्लासिक फिल्मों का प्रदर्शन, शिल्प- कार्यशाला, योग, ऐतिहासिक स्मारकों की पदयात्रा और अन्य कार्यक्रमों के भी प्रतिभागी बन सकेंगे. स्पिक मैके अपने 34 वें साल में छब्बीसवें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन 23 मई से 29 मई तक कटक में कर रहा है, जिसकी मेजबानी रावेनशॉ विश्वविद्यालय करेगा . इस अधिवेशन का उद्घाटन पंडित बिरजू महाराज तथा गिरिजा देवी जी के द्वारा किया रहा है.पिछले कुछ सालों ये कला और संस्कृति का बहुत बड़ा कुम्भ बन चुका है. इसके अलावा उत्कृष्ट कलाकार जो इस कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देंगे, उनमें - पंडित राजन और साजन मिश्रा, डॉ. अश्विनी भिडे देशपांडे , उस्ताद असद अली खान, पंडित वेंकटेश कुमार, श्रीमती सुजाता महापात्र, उस्ताद बहाउद्दीन डागर, पंडित उल्हास केशालकर शामिल होंगे. इसके अतिरिक्त, अन्य प्रतिष्ठित विभूतियों में सीताकान्त महापात्र, मनोज दास और सूफी गायक डॉ. मदन गोपाल सिंह द्वारा वार्ताएँ, ख्यातनाम चित्रकार अन्जोली ईला मेनन और पपेट की दुनिया का जाना पहचाना नाम दादी पदमजी ख़ास हो सकते हैं.इसी आयोजन में हमारी संस्कृति के एक और उजाले पक्ष इल्म को समेटते हुए यहाँ चार्ली चेपलिन और अकिरा कुरोसावा की फिल्मों का प्रदर्शन भी होना है. क से एक कार्यक्रमों को ठीक क्रम पर शामिल करने के पीछे आन्दोलन के संस्थापक डॉ. किरण सेठ और कुछ वरिष्ठ स्वयंसेवकों ने बहुत चिंतन किया है. अधिवेशन में आयोज्य इन भांत-भांत की कार्यशाला में भाग लेने से प्रतिभागियों को विभिन्न कलाओं सही मायने में साधक इभुतियों से सीखने का मौका मिलेगा. इन कार्यशालाओ का संचालन जाने-माने कलाकार करेंगे.डॉ. अश्विनी भिडे देशपाण्डे (हिन्दुस्तानी गायन), स्वामी त्यागराज (योग), श्री सीताकान्त महापात्र (क्रिएटिव राइटिंग), गुरु रामहरि दास (ओडिसी संगीत), गुरु सी.वी. चन्द्रशेखर (भरतनाट्यम), श्रीमति अन्जोली ईला मेनन (पेंटिंग), सरदार मदन गोपाल सिंह (सूफी) के सानिध्य में सीखने वाले विद्यार्थी अंतिम दिन अपने ज्ञान की अल्पकालिक प्रस्तुति भी देंगे. यह अधिवेशन छात्रों को दिग्गज कलाकारों के प्रदर्शन के साक्षी होने, हमारी सांस्कृतिक विरासत और उसकी गरिमा का सही और सादे रूप में अनुभव करने तथा उसकी प्रकृति की एक झलक पाने का एक दुर्लभ सुअवसर मिलेगा .गुरुओं के साथ बिताए ये पांच दिन बालकों में नैतिक मूल्यों एवं विचार प्रक्रियाओं को आत्मसात करने के लिहाज से बेहद जरूरी समझा जाना चाहिए.हमारी सांझी विरासत को अवेरने के गुण सिखाने वाले इस आयोजन में शामिल होने लिए कोइ शुल्क नहीं है मगर अपनी प्रतिभागिता हेतु पाठकों को आन्दोलन की वेबसाइट पर संपर्क कर अपना आवेदन करना होगा. आयोजन की प्रकृति और इसके असल स्वभाव के बारे में संस्थापक अध्यक्ष डॉ. किरण सेठ कहते हैं ये की पांच दिन का शोक ट्रीटमेंट है. जिन्हें चाहिए जरूर आए. हम अपने जीवन में साल में पांच से सात दिन कहीं आश्रम जैसे आलम में इस तरह गुजारें ताकि वर्षभर आत्मिक रूप से तंदुरुस्त रह सकें।माणिक 
स्पिक मैके 
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पूर्व सदस्य 





Blogger Comment
Facebook Comment