http://4.bp.blogspot.com/-5q2Nk3tjs9Q/VKmAzEK3cyI/AAAAAAAAD_U/L2HsJAmqhFg/s1600/eyetechnews%2BHeaderpngnew1.png

52 तीर्थों के दर्शन का लाभ देता करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मंदिर

(मुस्कान चतुर्वेदी)
राजस्थान ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत के चप्पे-चप्पे पर आस्था के केन्द्र स्थापित हैं जिन्हें गिन पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है फिर भी लोगों ने कई मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों आदि का निर्माण करवा कर इस आस्था को साकार रूप देने का प्रयास किया जो आज भी लोगों में उस परम शक्ति का अहसास कराती है। ये आस्था के केन्द्र बड़े-बड़े नगरों में ही नहीं अपितु छोटे-छोटे गांवों में भी स्थित हैं जहां लाखों की संख्या में श्रृद्धालु अपनी आस्था का परिचय देते हैं। इसी तरह का आस्था का केन्द्र है करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मंदिर।

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ शहर से 50 किमी. की दूरी पर चित्तौड़गढ़ उदयपुर वाया मावली स्टेट हाइवे नम्बर 9 पर स्थित एक छोटा सा गांव भूपालसागर कुछ प्राचीन स्त्रोंतोें के कारण राजस्थान के मानचित्र पर अपना स्थान बनाये हुये है। यहां स्थित प्राचीन जैन मंदिर, विशाल तालाब व शक्कर मिल के कारण इतिहास में इस गांव का नाम अमर है। भूपालसागर पंचायत समिति का प्राचीन नाम करेड़ा था परन्तु मेवाड़ रियासत के तत्कालीन महाराणा भूपालसिंह द्वारा यहां पर निर्मित एक विशाल तालाब की वजह से राजस्व रिकार्ड में इस गांव का नाम करेड़ा से बदलकर भूपालसागर कर दिया गया। कहा जाता है कि भूपालसागर स्थित तालाब का फैलाव एवं भराव क्षमता उदयपुर की फतहसागर झील से भी ज्यादा है। इस तालाब से आसपास के कई गांवों में सिंचाई व जल आपूर्ति की जाती है।
चित्तौड़गढ़ जिले की एकमात्र शक्कर मिल दी मेवाड़ शुगर मिल राजस्थान की सबसे पहली और सबसे पुरानी शक्कर मिल है। उसकी स्थापना वर्ष 1932 में की गई थी। प्रारंभ में यह निजी उद्योग रही लेकिन अब यह एक पब्लिक लिमिटेड उद्योग है। इस मिल में राज्य के उदयपुर संभाग में उत्पन्न गन्ने से चीनी (शक्कर) बनाई जाती थी। वर्तमान समय में यह चीनी मिल अपने जर्जर अस्तित्व को लिये हुए गत 9 वर्षों से बंद पड़ी है।
उक्त दोनों ऐतिहासिक स्त्रोंतों के अलावा यहां एक बहुत प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो कि करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर मेवाड़ में श्रीनाथजी, चारभुजाजी, एकलिंगजी, रणकपुर एवं केसरियाजी के समान ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रतिवर्ष यहां लाखों की संख्या में श्रृद्धालु व पर्यटक आते रहते हैं।
इस मंदिर के इतिहास के बारे में कई मत हैं जिनमें प्रमुख है सुकृत सागर ग्रंथ, जिसके अनुसार इस मंदिर का निर्माण आचार्य धर्मघोष सूरीजी के उपदेश से प्रभावित होकर मांडवगढ़ (मध्यप्रदेश) के तत्कालीन महामंत्री संघपति देवाशाह के पुत्र पेथड़शाह ने विक्रम संवत् 1321 में कराया जिसे संघपति पेथड़शाह के पुत्र झाझड़शाह द्वारा विक्रम संवत् 1340 में विशाल रूप दिया गया। 52 जिनालय युक्त इस जैन मंदिर में जैन सम्प्रदाय के 23 वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की 31 इंच बड़ी श्याम वर्ण पद्मासनस्थ मुर्ति स्थापित है जो कि वि.सं. 1656 में बनी थी।
श्वेत पाषाण से बने इस भव्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है जिसके दर्शन मात्र से ही मन को शांति मिल जाती है। मंदिर में दो कलश, दो शिखर व दो ध्वज दण्ड़ भी बने हुए हैं। मंदिर के मण्ड़प के दोनों तरफ छोटे-छोटे मण्ड़प वाले दो और मंदिर हैं। इस मंदिर का विशाल जीर्णोद्धार वि.सं. 2029 में प्रारंभ कराया गया जो 2 वर्षों तक चलता रहा, इस पर 12 लाख 50 हजार रूपये की धनराशि का व्यय हुआ तब जाकर वि.सं. 2033 माघ शुक्ला 13 को मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा कराई गई जिसमें विभिन्न तीर्थों के नाम से 51 पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएं व एक भगवान महावीर के नाम की प्रतिमा विधिवत् स्थापित कराई गई। इससे कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस मंदिर के पूर्ण दर्शन कर ले उसे 52 तीर्थों के दर्शन का लाभ प्राप्त हो जाता है।
मंदिर में रंग मंड़प, सभा मंड़प व नव चौकी में कलात्मक खुदाई की हुई जो देखने योग्य है।
लोगों का यह भी कहना है कि प्रतिवर्ष पौष कृष्णा दशम को सूर्य की पहली किरण सीधी श्यामवर्ण पार्श्वनाथ प्रतिमा पर पड़ती है जिसे देखने हजारों भक्त आते हैं।
उसी दिन से श्रीपार्श्वनाथ भगवान के जन्मदिवस के अवसर पर भूपालसागर में तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है जिसमें आसपास के गांवों के साथ ही दूर-दूर से कई जैन यात्री भी दर्शनार्थ आते हैं।
पार्श्वनाथ जैन मंदिर के पट प्रातः 5 बजे खुलते हैं। प्रातःकाल प्रक्षाल पूजा, केसर पूजा, पुष्प पूजा व मुकुट धारण होता है। इसके बाद 10 बजे आरती व सायंकाल 7ः30 बजे आरती और मंगलदीप होता है।
मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार पर दोनों ओर सवारीयुक्त हाथी बने हुए थे जिन्हें वर्तमान समय में हटाकर उसके स्थान पर कलात्मक प्रवेश द्वार बनाया जा रहा है।
Share on Google Plus

About amritwani.com

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment