मेवाड़ री इण पावन वीर भौमका रे माथे जन्म लेवण वाळा सगळा मनखां ने घणे मान सूं राम-राम, सलाम, अर खम्मा घणी। इण आखी दुनिया रे मायने मेवाड़ ही वो लूंठों राज्य हो, जठे मरण ने त्यौहार रे रूप में मनायो जातो हो। विश्व इतिहास रे पाना में इण री दूजीं नजीर कोनी मिले है। मेवाड़ रा इण शौर्य, पराक्रम अर त्याग ने निजरां में राखता तकां कर्नल जेम्स टॉड जिस्या अंग्रेज विद्वान आपरी रचना ’’।दंसे - ।दजपुनपजपमे व् ित्ंरंेजींद’’ रे मायने यो कह्यो हो कि ’’ज्ीमतम पे दवज ं चमजजल ेजंजम पद त्ंरंेजींद ’’
’’जौहर’’ रो उत्सव इण जागता जमीर री माटी सूं उपजियोडी वा ओळखाण ही जो मेवाड़ रो माथो पूरा विश्व इतिहास रे गूमेज सूं ऊँचो कर दीनो। इण मिनखां जूंण रे मायने सगळा ने खुद रो जीवण सबसूं प्यारों लागे है पण जदी मिनख आपरे जीवण रो त्याग किणी चीज रे खातर कर दे तो वा चीज जीवण सूं भी ज्यादा मूंगी हो जावे है।
’’जौहर’’ आत्म-प्रेम री प्रवृति अर सिद्धांत री रक्षा, इण दोन्यूं चीजां रे बीच में होवण वाळे द्वंद में सिद्धांत री जीत रो प्रतीक है।
मध्यकालीन भारत रा इतिहास रे मायने जठे कि तुर्का, मुगलां अर अफगानां रा अत्याचारां सूं सगळी हिन्दु रैयत त्रस्त ही, जद आ राजपूत जात ही खांधे माथे खांपण रख अर धर्म री रक्षा सारू आगे आई हीं। इण राजपूत जात रे कन्ने आत्म-स्वाभिमान अर हिम्मत पणों ही इस्या दो अमोघ अस्त्र हा जो शेष भारत रा सामाजिक ताना-बाना सूं परे इण जात ने खुद री ओळखाण दीनी ही। ’’यकीन महकम, अमाल पेहम मोहब्बत फतह-आलम, जेहादे जिन्दगानी में हैं, ये मीरे कारवां की शमसीरें।’’ ’’धर जाता, धरम पलटता, त्रिया पणन्ता ताव, ऐ तीनूं दिन मरण रा, कांई रंक कांई राव।’’
’’जर, जोरू अर जमीन.........’’ वाळो यो जूमलो दरअसल इणी संस्कृति री देन है। आज रा इण वैश्वीकरण रा युग में जदै जर खत्म व्हैगो, जोरू ने बाजार दिखाय दियो अर जमीन बिकाऊ चीज व्हैगी। इण अबकी वैळा में जौहर रा अनुष्ठान रे लारे लूकयोडी भावना ने अगर समझण-बूझण री कोशिश करां तो आ भावना आपारों मार्ग दर्शन कर सके है। जौहर अनुष्ठान पाश्चात्य मिउपदपेउ ने पौर्वात्य संस्कृति रो एक करारो जवाब है पण कुंभकर्णी नींद में सोयोड़ा सरकारी महकमां रा अहलकारां री समझ सूं म्हारी आ ठावी हथाई परे है। इणां रे वास्ते तो जौहर उत्सव रो मतलब सिर्फ इकट्ठा होयोड़ा लोगां रे हूजूम में ’’शांति अर व्यवस्था’’ ने कायम राखणों है। सरकार रा मोटा अहलकारां ने इण बात ने समझणी छावै कि जौहर उत्सव केवल सालाना जलसो नी हैं। आ श्रृद्धांजलि उण ललनावा ने जो आपरे सतीत्व री रक्षा खातर आपरे नश्वर शरीर रो त्याग हसतां-हसतां कर दियो।
इण जौहर उत्सव रे मायने शिरकत करण वाला सगळा मेवाड़ी मनखां ने आत्म-जौहर रो प्रण लेर खुद रे अन्तस में घर कर्योडी बुराइयां ने होम कर देणी छावै।
अरजवंत
कुँवर फतहसिंह चारण,
व्याख्याता, दर्शनशास्त्र
राजकीय कन्या महाविद्यालय, चित्तौड़गढ़
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