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चमत्कारी है आंतरी मां भवानी

आंतरी से राम प्रसाद शर्मा, पूर्व प्रधानाचार्य, शिक्षाविद् एवं पत्रकार

मालवा की गौरवशाली शस्य श्यामल धरा परस्थित नीमच जिले के पुण्यांचल को सुशोभितकरता रेतम नदी के पावन तट पर भक्ति एवंशक्ति का अनुपम स्थल मां दुर्गा का विशालऐतिहासिक प्रसिद्ध मंदिर जहां प्रतिदिनसैंकड़ों भक्त चमत्कारी मां भवानी के दर्शनकर अपने आपको धन्य मानते हैं।
मालवांचल में यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल नीमच जिला मुख्यालय से 58 किमी दूर मनासा तहसील के दक्षिण में स्थितहै। यह चमत्कारिक भव्य मंदिर प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित होकर वर्तमान में गांधीसागर डूब क्षेत्र में होने सेप्रायः नदी का पानी मंदिर को चारों ओर से घेरे रहता है। प्राकृतिक जल सौदर्य से मंदिर की शोभा द्विगुणित होकरमनमोहक हो जाती है जिसके कारण दर्शनार्थी बरबस ही खींचे चले आते हैं। दर्शन लाभ के साथ उन्हें नौका विहारका आनंद भी प्राप्त होता है।
मां भवानी के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण नटनागर शोध संस्थान सीतामऊ के अभिलेख के अनुसारविक्रम संवत् 1327 में तत्कालीन रामपुरा स्टेट के राव सेवाजी खीमाजी द्वारा करवाया गया था, जो विक्रम संवत्में बनकर पूर्ण हुआ था। इस मंदिर की लागत 7333 रूपये बताई जाती है। यह प्राचीन मंदिर मालव माटी केप्रसिद्ध लेखक, कवि एवं कहानीकार डॉ. पूरण सहगल द्वारा लिखी पुस्तकचारण की बेटीके अनुसार 700 वर्षपुराना है। जगत जननी जगन्नियन्ता जगदम्बा दक्षिण दिशा से नदी के हनुमान घाट से मंदिर में आकरविराजमान हुई हैं। आज भी हनुमान घाट के पत्थर पर मां के वाहन का पदचिन्ह अंकित है, जहां पूजा अर्चना कीजाती है तथा दूसरा पदचिन्ह मंदिर पर अंकित है। स्वयं प्रतिष्ठित माता जो मंदिर के गर्भगृह में विराजित है।भैंसावरी माता के नाम से जानी जाती है तथा पास में विराजित (दाईं ओर) शेर की सवारी पर मां दुर्गा (कालिका) की दिव्य प्र्रतिमा है।
मां भवानी दिन में तीन स्वरूप करती हैं। प्रातः बाल अवस्था, दोपहर में युवा अवस्था तथा सायंकाल में शील शांतअवस्था, ऐसे तीन रूपों में मां भक्तों को दर्शन देती है और मनोकामना पूर्ण करती है। चैत्र नवरात्रि एवं आश्विननवरात्रि में जगदम्बा के दर्शन का विशेष महत्व है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को घटस्थापना के साथ यहां मंदिर मेंअखण्ड़ ज्योति स्थापित की जाती है। अनेक भक्तों द्वारा भी अलग-अलग अखण्ड़ ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है।यह दृश्य दर्शनीय होकर पुण्यदायी होता है।
प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त यहां पंड़ितों द्वारा दुर्गा सप्तशती के पाठ किये जाते हैं। नवमी तिथि को यहां यज्ञ हवनहोता है जिसे देखने आसपास के गांवों के अलावा दूरदराज से भी कई भक्तगण यहां दर्शनार्थ आते हैं और यज्ञ हवनके दर्शन के साथ मां के दर्शनों का पुण्यलाभ भी प्राप्त करते हैं। इस जगत जननी जगदम्बा के मंदिर में भक्तगणअपनी मनोकामना पूर्ण होने पर हंसते-हंसते अपनी जिह्ना काटकर मां को भेंट कर देते हैं। जगदम्बा की असीमकृपा से नौ दिनों में जिह्ना पुनः जाती है। भक्त मां की जय-जयकार करने लगता है। परिवार के लोग उसेबैंड़-बाजे, ढ़ोल-ढ़माकों के साथ बंधाकर अपने घर ले जाते हैं। इस चमत्कार को देखने कई भक्तगण आते रहते हैं।दिव्य चमत्कार का प्रत्यक्ष दर्शन कर कृत-कृत हो जाते हैं।
कहा जाता है कि रामपुरा के राव दिवान घोड़े पर बैठकर प्रतिदिन सायं अपनी आराध्य मां के दर्शन हेतु आंतरीआते थे और पुनः रामपुरा चले जाते थे इसीलिये यह मां चंद्रावत चुड़ामणी के नाम से भी जानी जाती है। ऐसा भीकहा जाता है कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग के राणा भवानीसिंह के सुपुत्र चंद्रसिंह ने मां की अनन्य भक्ति की और शुद्धअंतःकरण की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उनके साथ मां कालिका (दुर्गा) आंतरी गांव को पधारीं। इस प्रकार चंद्रसिंहचित्तौड़ से मां कालिका को आंतरी लाये और प्रतिष्ठा की।
हिन्दुस्तान के कोने-कोने में माता के अनेक तीर्थ स्थान हैं जिनका अलग-अलग महत्व है। नीमच-मंदसौर जिलेमें भी मां के अनेक स्थान हैं जिनमें अरावली विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला के मध्य जोगणिया माता, भादवामाता, दूधाखेड़ी माता, चैनामाता, कुशलामाता, नालछा माता, देव डुंगरिया माता, सांगा खेड़ा माता, आंवरीमाता (चीताखेड़ाके पास), चामुण्डामाता और आंतरीमाता आदि परन्तु हमारे जिले में भादवामाता आंतरीमाता दो प्रमुखआद्यशक्तियों के शक्तिपीठ विशेष महत्व रखते हैं। आस्था एवं श्रृद्धा के केन्द्र आंतरीमाता के प्रसिद्ध मंदिर का नामसंभाग के तीर्थ स्थलों में भी श्रृद्धापूर्वक लिया जाता है। मनासा तहसील के गौरव जोगमाता के इस प्रसिद्ध मंदिर केप्रांगण में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के पावन पर्व पर जनपद पंचायत एवं ग्राम पंचायत के संयुक्त तत्वावधान मेंविशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला 12 जनवरी से 20 जनवरी के बीच आयोजित किया जाता है।भक्तगण मेले में आकर इच्छित वस्तुओं को खरीदते हैं और मेले का आनंद भी लेते हैं। इसके साथ ही मां के दर्शनोंका पुण्यलाभ प्राप्त कर एक पंथ दो काज करते हैं।
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