चित्तौड़गढ़। राजस्थान संस्कृत अकादमी एवं श्री कल्ला जी वैदिक विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में कल्याण लोक में आयोजित पांच दिवसीय वैदिक इष्टियों का विधिवत शुभारम्भ माघ शुक्ला एकादशी गुरूवार को हुए अन्वारम्भणी नामक इष्टि के साथ किया गया। किसी भी वैदिक यज्ञ के आरम्भ में इस इष्टि को करने का प्रावधान है, इसके नाम से ही प्रतीत होता है कि सम्यक आरम्भ के लिए इस इष्टि को ऋग्वेद के अग्नि सुक्त की ऋचाओं के साथ अग्निमंथन कर अग्नि प्रकट करते हुए गार्य पथ, दक्षिण वेदी एवं आव्हनीय वेदी में अग्नि को स्थापित किया गया। जिसके उपरान्त विभिन्न मंत्रों से देवताओं की आहुतियों के लिए गौ घृत एवं पुरोडाष की आहुतियां दी गई। वेदमूर्ति पं. सुधाकर कुलकर्णी ने बताया कि अजना विष्णु एवं सरस्वते की हवि पुराडोष तथा सरस्वती के लिए हवि पकाये हुए चावल से मंत्रोच्चार के बीच दी गई। उन्होने बताया कि काम्य इष्टि के आरम्भ के लिए ये इष्टि की गई। इस इष्टि के यजमान विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि वेदमूर्ति वाजपेया जी, पं. यज्ञदेश्वर दत्त, शैलूकर जी महाराज रहे। यज्ञ ब्रह्मा वेदमूर्ति अग्निहोत्री पं. सुधाकर दीक्षित जी थे जिनके साथ तीन मुख्य ऋत्विक, चार सहायक ऋत्विक तथा यजमान पत्नि ने आग्नेय इष्टि की
डाॅ. विजयशंकर शुक्ला ने बताया कि सभी प्रकार की कामनाओं की परिपूर्ति के लिए इष्टदेव को आमंत्रित कर अग्निदेव के माध्यम से आहुतियां दी गई। डाॅ. शुक्ला ने बताया कि वेद का परिचय तीन रूपों में प्राप्य है प्रथमतः देवताओं की उपासना स्तुतियों के माध्यम से वेद की विभिन्न संहिताओं के मंत्रो से की जाती है। उन्होने बताया कि जिन मंत्रो का प्रयोग हम विशिष्ट कामना के लिए करते है उनका संग्रह यजुर्वेद के रूप में प्राप्त है जिसके मंत्रो से यज्ञो का विधान किया गया है तथा इनका विस्तार ब्राह्मण ग्रंथों के साथ-साथ कल्पवेदांत के श्रोत सूत्रों में उपलब्ध है। इन्ही यज्ञो का एक विशिष्ट अंग है। काम्य परक इष्टियों का आयोजन जिनके माध्यम से राष्ट्र व लोक का अभ्योदय दूरित एवं दुर्भाग्य को दूर करना, मित्रो की प्राप्ति का अभ्योदय एवं अन्य कई कामनाओ के लिए इष्टि यज्ञ किये जाते है। गुरूवार को महर्षि याज्ञवल्क्य सभा भवन में पं. सुधाकर कुलकर्णी एवं डाॅ. विजय शंकर शुक्ला ने वैदिक यज्ञो के स्वरूप एवं महत्व को उद्घाटित किया।
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