निम्बाहेड़ा 19 फरवरी। प्रदेश के मूर्धन्य वेद विद्वान प्रो. दयानंद भार्गव ने कहा कि श्री कल्ला जी वैदिक विश्वविद्यालय एवं राजस्थान संस्कृत अकादमी द्वारा राष्ट्र के अभ्युदय तथा लुप्त होती वैदिक संस्कृति के संरक्षण के लिए स्थापित किये जा रहे श्री कल्ला जी वैदिक विश्वविद्यालय की पूर्णता की कामना के लिए वैदिक इष्टियों का अनुष्ठान एक शलाघनीय प्रयास है, जिसके माध्यम से आने वाले समय में देश और प्रदेश में जहां सर्वत्र खुशहाली और सर्वांगीण विकास होगा वहीं जन-जन की कामना सफल होगी। प्रो. भार्गव माघ शुक्ला द्वादशी शुक्रवार को कल्याण लोक में आयोजित आग्नेयी इष्टि के प्रमुख यजमान तथा व्याख्यान माला के मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि वैदिक परम्परा में काम्यपरक इष्टियों का आयोजन का महत्व दर्शाया गया है तथा यज्ञो के विशिष्ट अंग के रूप मंे पुरातन काल से इष्टि यज्ञ होते रहे हैं लेकिन वर्तमान में इष्टि यज्ञ करने वाले देश में गिने चुने विद्वान है जिनमें से महाराष्ट्र के गंगाखेरा के अग्निहोत्री वेदूमर्ति पं. यज्ञेश्वर दत्त तथा पुणे के वेदमूर्ति पं. सुधाकर कुलकर्णी ख्यातनाम है जिनके माध्यम से कल्याण लोक के यज्ञ मण्डप में पांच दिवसीय इष्टियों का आयोजन निश्चिय ही सबके लिए फलीभूत होगा।
राजस्थान संस्कृत अकादमी की निदेशक डाॅ. रेणुका राठौड़़ ने भारतीय संस्कृति के प्रमुख तत्व वैदिक यज्ञ के एक अंग वैदिक इष्टियों का आयोजन प्रदेश के इस कल्याण लोक में आयोजित कर वेदों के संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयासों में महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी। उन्होने कहा कि यहां स्थापित होने वाला वैदिक विश्वविद्यालय देश की एक अनुपम कृति होगी जहां चारों वेदो पर शोध परख अध्ययन की तैयारी की जा रही है। डाॅ. राठौड़़ ने कहा कि अपनी प्रकार के इस अनूठे विश्वविद्यालय की पूर्णता के लिए विद्वानो, आचार्यो, राजनेताओं, उद्यमियों एवं जनसाधारण को स्वतः स्फूर्त भागीदारी निभाते हुए वैदिक ज्ञान को बढ़ावा देने में अपनी अहम भूमिका निभाने की आवश्यकता है। इस विश्वविद्यालय के अकादमिक प्रमुख डाॅ. विजय शंकर शुक्ला ने कहा कि अन्वारम्भणी इष्टि के बाद दूसरे दिन आग्नेय इष्टि का आयोजन सभी प्रकार की कामनाओं की परिपूर्ति के उद्देश्य से किया गया है। उन्होने बताया कि वेदो में सभी देवो के मुख के रूप में अग्नि को
प्रधानता दी गई है। इसी कारण आग्नेय इष्टि के लिए अग्नि देव का आव्हान कर गौ घृत एवं पुराडोष की आहुतियां देकर सभी देवो की कृपा प्राप्ति से राष्ट्रीय कल्याण की कामना की गई है। डाॅ. शुक्ला ने कहा कि वेद ईश्वर के नाम का पर्याय है तथा ऋषि परम्परा से वैदिक ज्ञान मनुष्यों में परावर्तित होता रहा है। उन्होने बताया कि महर्षि व्यास ने विषय की दृष्टि से वेदो के चार भाग कर चतुर्वेद तैयार किये। उसी रूप में महर्षि याज्ञवल्क्य ने भगवान भास्कर से वेदो का ज्ञान प्राप्त कर वेद की परम्परा को प्रकट किया है। वहीं परम्परा पश्चिम व उत्तर भारत में शुक्ल यजुर्वेद के रूप में प्रतिस्ठापित है। वेद मूर्ति पं. सुधाकर कुलकर्णी ने वैदिक परम्परा में यज्ञो के महत्व को परिभाषित किया। आग्नेय इष्टि में वयोवृद्ध प्रो. भार्गव सहपत्निक उपस्थित थे वहीं तीन मुख्य ऋत्विक एवं चार सहायक ऋत्विक के सहयोग से आग्नेय इष्टि यज्ञ किया गया। माघ शुक्ला त्रयोदशी शनिवार को वसुदेव कुटुम्बकम् की भावना के अनुरूप सम्पूर्ण भारत में मैत्री भाव स्थापित करने के उद्देश्य से मित्र विंदा इष्टि का आयोजन किया जायेगा तथा व्याख्यान माला में प्रो. राजेन्द्र मिश्र वैदिक परम्परा पर व्याख्यान देंगे।
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