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नशे की संस्कृति

महानगरों, कस्बो, गांवो और देहातों में समान रूप से प्रभावी बनने वाली संस्कृति की पहचान ‘‘नशे की संस्कृति‘‘ के रूप में हो रही है। इस संस्कृति के सूत्रधार कौन है ? इसका प्रथम प्रयोग कब हुआ ? इसको विस्तार किसने दिया ? इस सन्दर्भ में व्यापक षोध और बहस की अपेक्षा है। अन्यथा यह नशे की नागिन अपनेषीघ्र प्रभावी जहर से मानव जाति के अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर सकती है।
नशे की आदत कैसे लगती है ? इस प्रष्न पर विचारकांे के अलग-अलग अभिमत हैं। कुछ व्यक्ति चिन्ता, थकान और परेषानी से छुटकारा पाने की चाह से नशे के क्षेत्र में प्रवेष करते है। कुछ व्यक्ति चिन्ता, थकान और परेषानी से छुटकारा पाने की चाह से नशे के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। कुछ व्यक्ति चिन्ता, थाकान और परेषानी से छुटकारा पाने की चाहसे नशे के क्षेत्र में प्रवेष करते है। कुछ व्यक्ति संघर्षों से जूझने के लिए नषा करते हैं। कुछ व्यक्ति चुस्त, दुरूस्त और आधुनिक कहलाने के लोभ में नषे के चंगुल में फंसते है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी हैं, जो दूसरे लोगों को धूम्रपान या मदिरापान करते हुए देखते हैं, तो उनके मन में एक उत्सुमता जागती है है और उनके कदम बहक जाते हैं। कुछ व्यावसायिक ऐसी आकर्षक वस्तुओं का निर्माण करते हैं कि उपभोक्ता उनका प्रयोग किये बिना रह नहीं सकता। कुछ व्यक्ति साथियो के लिहाज या दबाव के कारण नशे के षिकार होते हैं, और भी अनेक कारण हो सकते हैं। कारण कुछ भी हो, एक बार नशे की लत लग जाने के बाद मनुष्य विवश
हो जाता है। फिर तो वह प्रयत्न करने पर भी उससे मुक्त होने में लोग कठिनाई अनुभव करता है।
प्राचीन काल में लोग सोमरस तथा हुक्का पीते थे। आधुनिक युग में इसी बात को आधार बनाकर कहा जाता है। कि नशे की संस्कृति आदिमकाल से जुड़ी हुई है। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में घुल रहीं अनेक विकृतियों के मूल में एक बड़ा कारण नशे की प्रवृत्ति है। इससे आर्थिक, मानसिक, षारीरिक और भावनात्मक स्तर पर मनुष्य का जितना अहित होता है, उसे आंकड़ो में प्रस्तुतिदी जाय तो उसकी आंखें खुल सकती है। मद्यपान और ध्रूम्रपान को नियन्त्रित या रोकने के लिए पहला सूत्र है हढ संकल्प और दूसरा सूत्र है संकल्प की पूर्ति के लिए कारगर उपायों की खोज कुछ लोग नषीले व मादक पदार्थो के उत्पादन व सेवन पर रोक लगाने की मागं करते हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि पाठयक्रम में ऐसे पाठ जोड़े जाएं, जो मादक व नषीले पदार्थो के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों को प्रंभावी ढ़ग से प्रस्तुत करते हों। कुछ लोग इलेक्ट्रोनिक्स प्रचार माध्यमों से वातावरण या मानसिकता बदलने की बात करते हैं। कुछ लोगों का चिन्तन है कि तम्बाकू की खेती और बीड़ी उद्योग, कामगरों के सामने नया विकल्प प्रस्तुत किया जाय। यदि सभी व्यक्ति और संगठन मिलकर ‘‘विष्व स्वास्थ्य संगठन के समक्ष प्रस्ताव रखकर उसे इसके लिए सहमत किया जाय तो नशे की संस्कृति के जमते हुए पांवो को उखाड़ने में अधिक सुविधा रहेगी।
बंशीलालजी
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