उदयपुर. तटस्थता या यथास्थितिवाद को बनाए रखना पत्रिका का नजरिया नही होना चाहिए, तटस्थता एक तरह की चालाकी है। पत्रिका को जनपक्षधर होना पड़ेगा क्योंकि समाज और मनुष्यता की बेहतरी से बड़ा कोई लक्ष्य नही है। ‘पक्षधर’ के सम्पादक और दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सह आचार्य डा. विनोद तिवारी ने ‘हिन्दी लघु पत्रकारिता: नयी चुनौतियाँ' विषय पर व्याख्यान में कहा कि लघु पत्रिका का बड़ा दायित्व यह है कि वह व्यवस्था के साथ बहस बनाते हुए प्रतिरोध की रचना करे। उदयपुर के डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वरा आयोजित गोष्ठी में डॉ. तिवारी ने कहा कि व्यापक हिन्दी समाज तक पहुँचने के लिए लघु पत्रिकाओं को और बड़े प्रयास करने होंगे. गोष्ठी में ‘बनास’ के संपादक डा. पल्लव ने कहा कि अपनी भाषा और साहित्य के प्रति प्रेम और निष्ठा के लिए सांस्कृतिक हस्तक्षेप जरूरी है जिसका अवसर लघु पत्रिकाएँ देती है। उन्होने कहा कि समकालीन रचनाशीलता का श्रेष्ठ इन लघु पत्रिकाओं के मार्फत ही आया है। जरूरी यह है कि समाज विज्ञान और दूसरे अनुशासनों को भी व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचाया जाए। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ट आलोचक प्रो. नवल किशोर ने कहा कि व्यावसायिक मीडिया के विकल्प ढूंढना जरूरी है। साहित्य संस्कृति के संदर्भ में लघु पत्रकारिता को व्यावसायिक हुए बिना जनपक्षधर होने की चुनौती है। बी.एन. कालेज के प्राध्यापक अवम जन संस्कृति मंच के राज्य संयोजक हिमांशु पंड्या ने सूचना तकनीक के नये माध्यमों को अपनाने की जरूरत बताते हुए कहा कि जब अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर गंभीर खतरे दिखाई दे रहे हों तब विचार की थोड़ी सी भी गुंजाइश महत्वपूर्ण हो जाती है. संवाद में ऐपवा की डा. सुधा चौधरी, ग़ज़लगो मुश्ताक चंचल, मीरा गर्ल्स कालेज की डॉ. तराना परवीन, डॉ. पूनम अरोड़ा, तेजशंकर पालीवाल, प्रकाश तिवारी, हाजी सरदार मोहम्मद, भंवर सिंह राजावत सहित अन्य प्रतिभागियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अंत में डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने आभार व्यक्त किया.
नन्द किशोर शर्मा
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