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‘करवा चौट’ प्रेम के प्रतीक त्योहार

हिंदू धर्म में अनेक ऐसे त्योहार आते हैं जो हमें रिश्तों की गहराइयों तथा उसके अर्थ से परिचित करवाते हैं। करवा चौथ भी उन्हीं त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 15 अक्टूबर, शनिवार को है। यह त्योहार पति-पत्नी के अमर प्रेम तथा पत्नी का अपने पति के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
वास्तव में करवा चौथ का त्योहार भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है जो पति-पत्नी के बीच होता है। भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। करवा चौथ का व्रत रख पत्नी अपने पति के प्रति यही भाव प्रदर्शित करती है। स्त्रियां श्रृंगार करके ईश्वर के समक्ष दिनभर के व्रत के बाद यह प्रण भी लेती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी।
हिंदू धर्म में पुरातन काल से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली रही है। इस व्रत में विवाहित स्त्रियों दिनभर निराहार तथा निर्जला (बिना पानी पीए) रहना पड़ता है। इसके बावजूद विवाहित महिलाओं को इस व्रत का खासतौर पर इंतजार रहता है। यही इस पर्व की विशेषता है।
मेहंदी बिना अधूरा करवा चौथ : पूरे साज-श्रृंगार के साथ मेहंदी के बिना करवाचौथ का व्रत अधूरा माना जाता है। शादी के समय की तरह ही इस व्रत में महिलाएं दोनों हाथों में मेहंदी लगवाती हैं। व्रत से एक रात पहले ही मेहंदी लगवा ली जाती है, ताकि व्रत वाले दिन परेशानी हो।
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