घणी दूर सू दोडियो थारी गाडोली ले लार - गाडी में बैठा ले बाबा जाणो है नगर अन्जार।
चित्तौड़गढ़ 12 अक्टूबर । घणी दूर सू दोडियो थारी गाडोली ले लार - गाडी में बैठा ले बाबा जाणो है नगर अन्जार। इस भजन के माध्यम बाल व्यास राधाकृष्ण जी महाराज ने कहा कि भगवान भक्त के निश्छल प्रेम के वशीभूत होते है वे भक्त की एक पुकार पर किसी न किसी रूप में उसकी सहायता के लिए प्रकट हो जाते है
बाल व्यास मंगलवार रात्रि को मीरा स्मृति संस्थान द्वारा आयोजित मीरा महोत्सव के द्वितीय दिवस स्थानीय गोरा बादल स्टेडियम में दूधिया रोशनी में शरद पूर्णिमा के चन्द्र किरणों से बरसती अमृत वर्षा को अपनी वाणी में घोलकर जब इस भजन को प्रस्तुत कर रहे थे तो समूचा वातावरण कृष्ण भक्ति से सराबोर हो गया और कई भक्त बरबस ही नृत्यलीन हो गये। उन्होंने नानी बाई को मायरो कथा के प्रंसग में भगत नरसी द्वारा नानी बाई के भात भरण के लिए टूटी बैलगाडी बूढे बैल के साथ 11 नेत्रहीन संतो के सानिध्य में ठिठुरती सरद रात में जब अपने आराध्य श्रीकृष्ण को संकट से उबारने का आव्हान किया तो प्रभु श्रीकृष्ण किसना खाती के रूप में उसका सहयोग करने पहुंच गये। इस संदर्भ को सरस मारवाडी भाषा में प्रस्तुत करते हुए बाल व्यास ने साथी संतो की भावना को बहुत ही सुन्दर रूप में प्रकट किया उन्होंने कहा कि जब भक्त नरसी किसना को पहचान गये तो कृष्ण ने उन्हें साथियों को अन्जान रहने का सुझाव दिया लेकिन जब उन्होंने गाडी की मजदूरी मांगी तो भक्त नरसी घबरा गया और जब भगवान ने उसे मजूरी के रूप में भक्ति की सेवा मांगी तो वह बहुत प्रसन्न हुआ इसी दौरान बाल व्यास जी ने अपनी चिरपरिचित शैली में ‘‘मेरे सिर पर रख दे ठाकुर अपने दोनों हाथ देना है तो दीजिए जन्म-जन्म का साथ’’ भजन प्रस्तुत किया तो ऐसा लगा कि मानो भगवान श्रीकृष्ण कथा मण्डप में स्वयं उपस्थित होकर भक्तो को जन्म-जन्म का साथ देने का आशीवार्द दे रहे हो।
बाल व्यास ने कहा कि भक्त नरसी और मीरा ने कभी भी जग हसीं की परवाह नही कि क्योंकि भक्त तो लौकिक बेडियों के बंधन मे नही बंधते। उन्होंने भक्तों को ईश्वर भक्ति में आडम्बर से परे रहकर सच्चे हृदय से लौ लगाने की प्रेरणा देते हुए ‘‘देखा लारे भाया किया कट जावेलो- पल में टिकट थारो कट जावेलो’’ भजन के माध्यम से लोगो को प्रेरित किया कि वे दुर्लभ मानव जीवन को प्रभु भक्ति का साधक मानकर सतसंग में भागीदार बने। उन्होंने नरसी भगत की पारिवारिक और सामाजिक दुर्दशा का बखान करते हुए कहा कि लौकिक रूप से नाते रिश्तेदारो को मायरे का निमन्त्रण और सहयोग का आग्रह करने पर सभी ने उसकी दरिद्रता का उपहास किया। लेकिन वे तो अपने आराध्य के प्रति दृढ निश्चयी थे इसीलिए सूर-सन्तों को लेकर भात-भरण को चल पडे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि ‘‘नानी बाई का मायरा की ठाकुर जी ने लाज’’ और उनको यह विश्वास अटल साबित हुआ क्योंकि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किसना खाती के रूप में आकर उसके सहयोग मार्ग प्रशस्त कर दिया।
बालव्यास जी ने नरसी भगत के बूढे बैल के सन्दर्भ में वर्तमान युग में गौ सेवा को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि पेट्रोल की बढती कीमते घटते उत्पादन के चलते वह समय भी आ सकता है जब एक बार फिर बैलगाडी का युग आये ऐसे में हमे गौ संरक्षण को सर्वोपरि मानना चाहिये।
बाल व्यास जी ने क सरद पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसी पवित्र दिन गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ महारास किया था उन्होंने गोपी-गीत की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि गोपी-गीत गोपियों ने नही बल्कि उनकी आत्मा में विराजीत स्वयं उनके आराध्य श्रीकृष्ण ने गाया था जो आज भी वृंदावन में गुंजायमान है इसी संदर्भ में संकीर्तन के साथ कथा के अन्त में महारास की एक झलक के रूप में भक्ति और नृत्य का आयोजन भी किया गया। प्रारंभ में मीरा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष भंवरलाल शिशोदिया, सचिव प्रो. सत्यनारायण समदानी सहित संस्थान के पदाधिकारीयो एवं विभिन्न समितियों के सदस्यों ने बाल व्यास जी का माल्याअर्पण कर स्वागत किया कथा के दौरान समूचा पाण्डाल खचाखच भरा हुआ था और कई श्रोताओं को खडे रहकर कथा का आनन्द लेना पडा इस दौरान महाराज श्री द्वारा प्रस्तुत कई भजनों पर श्रद्धालु नर-नारी तालियों से संगत करते हुए नृत्य कर रहे थे।
मीरा महोत्सव में सबसे आख़री मगर खास आकर्षण गरबा-डांडिया प्रतियोगिता और प्रदर्शन का रहेगा,इस प्रस्तुति के संयोजक अर्जुन मूंदड़ा ने बताया कि तेरह अक्टूबर को शाम साढ़े सात बजे गोरा बादल स्टेडियम में ही नगर के पांच दल प्रतियोगिता में भाग लेंगे. जिनमें जय अम्बे महोत्सव समिति,झाँजर डांडिया समिति,जय माँ गरबा रास समिति,मेवाड़ महोत्सव समिति,कुम्भा नगर महोत्सव समिति और नवदुर्गा मित्र मंडल शामिल होंगे.इसी आयोजन में दो दल केवल अपनी प्रस्तुति-प्रदर्शन करेंगे जिनमें सूर्यदल और गुजराती समाज नवयुवक मंडल शामिल है.मूंदड़ा के अनुसार पिछले तीन सालों से चला आ रहा ये आयोजन इस महोत्सव में संगीतमय कथा के बाद दूसरा सबसे बड़ा आकर्षण होगा.विजेताओं में प्रथम को इक्कीस हज़ार,दूसरे स्थान वाले को पंद्रह हज़ार और बाकी की लिए पांच-पांच हज़ार के तीन सान्वाना पुरूस्कार मिलेंगे.
राम प्रसाद मूंदड़ा
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