चित्तौड़गढ़ - राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ के तत्वावधान में पिछले सालों में देखे तो ये तीसरी बार चित्तौड़गढ़ जैसे मझोले शहर में पिछले बारह सालों से राजस्थान में पत्रकारिता क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाले अनिल सक्सेना के समन्वयन में राज्यस्तरीय कार्यशाला आयोजित हुई है। कार्यशाला पूरे रूप में नगर की पद्मिनी होटल में चार सितम्बर, 2011 प्रमुख निर्णयों को समेटते हुए गहरे विचार-विमर्श के साथ पूरी हुई। ये आयोजन यहाँ मेवाड़ मीडिया वेलफेयर यूनियन के साथ जोड़कर हुआ जिसे उपस्थित प्रतिभागियों ने सराहा.आयोजन में दोपहर बारह बजे से ही आरम्भ हुए विमर्श में बहुतेरे वक्ताओं ने कभी सत्ता, प्रशासन को आड़े हाथों लिया तो कभी खुद मीडिया जगत में ही फैल रहे भ्रष्टाचार को निशाना बनाया.ये कार्यशाला कहीं न कहीं स्थानीय मेहनती पत्रकारों को देश दुनिया के मीडिया जगत को जानने के साथ ही कई जरूरी और अछूते मुद्दों पर सोचने को प्रेरित कर गयी।
आयोजन में पत्रकारों की रोजी-रोटी के साथ ही उनकी सुरक्षा और मूलभूत आवश्यकताओं को लेकर भी मांगें पूरजोर तरीके से रखी गयी,जिन्हें मंच ने बहुत सोच के साथ साथ अपने उदबोधन में शामिल किया है.मंच पर जहां समाज के हर वर्ग से मौजूद प्रतिनिधि ने कार्यशाला को एक रूप में सम्पूर्ण आकार दे दिया.सामाजिक परिदृश्य से जुडी एक गजल और फिर माँ भारती पर केन्द्रित एक गजल के साथ ही मेवाड़ मीडिया वेलफेयर यूनियन की संभागीय सचिव और कुशल सूत्रधार शकुन्तला सरूपरिया ने कार्यशाला को आगाज दिया जिसे वक्ताओं ने अपने अनुभव और वाणी से उत्तरोत्तर गाढा किया।
भड़ास फॉर मीडिया के संस्थापक और संपादक यशवन्तसिंह ने कहा कि सत्य की परिभाषाएँ अनेक मिल जाएगी मगर सत्य कहीं नहीं मिलता। सच को लिखने की हिम्मत जुटाने वाले पत्रकार समय आने पर अपने मीडिया हाउस के चोंचलों में फंसते हुए अपने सिद्धान्तों से समझौता कर लेते हैं। वही कलम ईमानदारी से लम्बे समय तक चल सकती है जिसका आधार सच हो। कमोबेश यही कहना है कि हमें मीडिया, सत्ता, समाज और प्रशासन जैसा ऊपर से दिखता है, तस्वीर उससे कई अलग होती है। नैतिक मूल्यों की बातें उपरी लोगों के द्वारा निचले तबके के लागों के लिए दिया गया एक सोचा समझा दर्शन है। इस दौर में मेन स्क्रीन मीडिया के भरोसे न रहते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपने बूते न्यू मीडिया आन्दोलन से जुड़ना होगा, जिसमें ब्लॉग, कम्यूनिटी रेडियो, स्वयं के छोटे-छोटे अखबार शामिल हो सकते हैं. कई छोटी वेबसाईट भी बहुत कमाल का काम कर रही है और बड़े बड़े शोषक-शासकों को परेशान करके रख दिया है।
उन्होंने कहा कि मैं आपके बीच का ही आदमी हूँ.मुझे कोई लच्छेदार भाषण देना नहीं आता, न ही मैं कोई टी.वी. पर दिखने जैसा चेहरा लिए हूँ.सालों का अनुभव मेरे साथ है उसे ही आधार बनाकर अपनी बात रखता हूँ कि.यहाँ मीडिया जगत के खुद के भीतर क्या कुछ हो रहा है इसके फैलाव को देखते हुए हमनें भड़ास फॉर मीडिया नामक वेबपोर्टल के जरिए कुछ ठोस काम किया जिसे रोजाना लाखो हिट्स मिल रहे हैं. ये एक नवाचारी कदम है । जो कहीं न कहीं न्यू मीडिया की सशक्त उपज है।
इसी बीच से कुछ सालों से सिटिजन जर्नलिज्म का कोंसेप्ट भी उभरा है.जब पत्रकार ही धंधा करने लगे तो हर नागरिक को पत्रकार बन जाना चाहिए। अब पत्रकारिता को किसी के रहमोकरम पर नहीं छोड़ कर हमें अपना खुद का ब्लॉग बना सटीक तरीके से अपनी बात रखने का हुनर पालना होगा. एक बात और कि पत्रकारिता को पेशन के साथ करें वहीं आजीविका के लिए कोई और धंधा करें.
पी.आर. एजेंसियों को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि टेलेंटेड और भ्रष्टाचारी दोनों तरह के लोग जब मिल जाते हैं तो देश का बंटाधार तय है. दुःख इस बात का भी है कि अब तो मीडिया में ही भ्रष्टाचार आ गया है. कलम के दम पर सत्य लिख कर कोई खुले आम अगर घूम रहा है तो ये उसकी साफ नीयत का कमाल ही है. पेज थ्री परम्परा के पोषक शुरू से बड़े अखबार ही रहे हैं और वैसे भी अब सब कुछ पूंजी का खेल हो गया है. जहां पहूंचकर मीडिया का भी एजेंडा बदलने लगता है।
मीडिया,सरकार और जनता के बीच हमेशा मध्यस्थ रही है। मगर अब स्थितियां विलग है जहां मीडिया हाउस भी किसी उद्योग कंपनी की तरह मार्च के अंत में फायदे का बजट चाहते हैं। परिस्थितियाँ कुछ यूं भी बदली है कि सप्ताहभर में किए पचास स्ट्रिंग ओपरेशन में से अंत में पैतालीस तो मेनेज कर लिए जाते हैं और बाकी पांच जो मेनेज नहीं हो पाते उन्हें ब्रोडकास्ट कर या छापकर मीडिया हाउस सरोकार निभाने का दंभ भरते नजर आते हैं. भूत-प्रेत को लफ्फाजी दिखा-सुनाकर कब तक रेटिंग बटोरते रहेंगे, अन्तोगत्वा मीडिया जगत को ये बात समझ आ भी गयी कि जनता का भरोसा ही उनकी असल रेटिंग तय करती है इसलिए रेटिंग के बटोरने के मायने और रास्ते यथासमय पर बदले भी हैं।
मध्य प्रदेष सरकार के राजकीय अतिथि बालयोगी उमेशनाथ जी महाराज ने उपस्थित पत्रकारों के साथ ही अन्य लोगों को वर्तमान परिपेक्ष्य में मीडिया की सार्थक भूमिका विषय पर दिए व्याख्यान पर प्रभावित किया । उन्होने कहा कि देश का ये दुर्भाग्य ही है कि हमने चिंतन-मनन छोड़ दिया है, समय ऐसा आ गया है कि मीडिया का साथी अपनी कलम से कुछ लिखकर रात घर चल देता है मगर उसके लिखे पर अगली सुबह लाखों की संख्या पाठक में चिंतन-मनन-पठन करते हैं. इसलिए कलम का लिखा बहुत सधा हुआ और सोहा-समझा होना चाहिए। अब पत्रकारों को खुद ही निर्णय करना है कि उन्हें किस तरफ खडा होना है- कौरव, कंस और रावण की सेना में या कि फिर पांडवों की तरफ, मगर चिंता ये भी है कि आज देश में संत की वाणी और पत्रकार की कलम सबकुछ बिक जाता है,जो सबसे जरूरी हथियार हो सकते थे, लेकिन ऐसा नही है आज भी ईमानदारी है ओर ईमानदार पत्रकार के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी इन्सान ईमानदार है। बालयोगी ने कहा कि आज भी मीडिया की विष्ववनियता बनी हुई है ओर पत्रकारों को छोटे लाभ के चक्कर में पडकर अपने मूल आधार को नही खोना चाहिए। बिडला सीमेंट के सयुंक्त अध्यक्ष ओर समाजसेवी निरंजन नागौरी ने कहा कि हमें ये बात नहीं बुलानी चाहिए कि पत्रकार भी कई बार द्वंद्व की स्थिति में आ खड़ा होता है.ऐसे में उसका निर्णय बहुत मायने रखते हुए के लोगों को प्रभावित करता है.हम ये बात भी स्वीकारते हैं कि देश में जवाहर लाला नेहरू विश्वविद्यालय या कॉफी हाउस में बौद्धिक चिंतन के के दौर चलते हैं,मगर अंत ठीक हमेशा की तरह ही होता है।
वर्तमान में इंडिया न्यूज से जुडे अतुल अग्रवाल के अनुसार पत्रकारों की असल स्थिति बयान करते हुए कहा कि पत्रकार कोई आदर्शवादी जीव नहीं है, वह कोई मिशन नहीं बल्कि प्रोफेशन का आदमी है। सामाजिक सरोकारों की जिम्मेदारी केवल पत्रकार के माथे थोप कर उसे उसकी खुद की पारिवारिक जिम्मेदारियों से अलग नहीं देखा जाना चाहिए। पत्रकारों के लिए भी न्यूनतम मजदूरी जैसा कोई कॉन्सेप्ट जरूरी होने की बात अग्रवाल ने पूरजोर तरीके से रखी।
उन्होने कहा कि अन्ना हजारे की आन्दोलन में मीडिया ने कोई बड़ा काम नहीं बल्कि अपना धंधा चमकाया है.ये बहुत पुरानी बात हो गयी है.नई बात तो ये है कि सूचना का प्रजातंत्रीकरण हो गया हैं.इस नए मीडिया युग में आप देखेंगे कि कुछ मीडिया हाउस घरानों को तो खरीदा जा सकेगा मगर तब न्यू मीडिया की उपज इन ब्लॉग लिखने वाले लाखों कलमकारों को खरीद सकना मुमकिन नहीं होगा। असल में इस जुगाड़ को तोड़ने की कवायद ही है न्यू मीडिया इसमें भी दो बात हो सकती है कि लोग आगे जाकर कहे कि ये फुकट की पत्रकारिता कब तक ? कहीं न कहीं ये सवाल पहले अपनी रोजी-रोटी की जरूरतें पूरी करने पर जाकर खत्म होता है।
अग्रवाल ने कहा कि इन सब हालातों में भी पत्रकार और ठेकेदार में अंतर कायम रहना जरूरी है। नौकरी और सरोकार में फर्क समझ आना जरूरी है.अतुल अग्रवाल अपने लहेजे में कहते हैं कि हम पत्रकार अन्ना हजारे और गांधी नहीं है। हम भी एक सामान्य इंसान है हमें महिमामंडित कर बड़ा नहीं बनाया जाए.ये मेरी नजर में ये भी महज एक नौकरीभर है,जैसे और नौकरियाँ होती आई है। आखिर में ये ही कहूंगा कि पत्रकारिता केवल जीवन का जुगाड़ है.दो जून की रोटी कमाने का जरिया भर है।
इसी बीच एक श्रोता स्थानीय शिक्षाविद डॉ. ए. एल.जैन के सवाल पर उन्होंने अपने वक्तव्य में कुछ जोड़ते हुए ये कहा कि ये बात भी सच है कि तनख्वाहें बढ़ जाने से भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होगा। सही मायने में ये सबकुछ नीयत का मामला है। न्यूनतम मजदूरी हो या लाखों की पगार,नीयत बिगड़ने पर वही सब सरोकार गौण हो जाते हैं।
अग्रवाल ने कहा कि पिछले चौदह सालों में नौ टी.वी.चौनल में काम करने का तजुर्बा है,और उसके बलबूते कह सकता हूँ कि देश के कई गणमान्य लोग टी.वी. पर फुकट का ज्ञान परोसते नजर आते हैं। आठ दस लाख की महीनावार पगार पाते हैं। बिना किसी का नाम लिए अतुल अग्रवाल ने कहाँ कि इसी देश में कुछ संपादकों की गेंग हैं जिसे दंडवत किए बगैर लोगों के नौकरी नहीं चल सकती है।
जिला कलेक्टर रवि जैन ने भी अपनी बात में कहा कि इन बीते सालों में पत्रकारिता बहुत प्रखर होकर निखरी है। आज पत्रकार प्रशासन से भी दो कदम आगे जाकर काम कर रहा है। लेकिन कई बार इस व्यवसाय में पावर और पैसे की भूख आदमी को ब्लेकमेलिंग के धंधे में जा बिठाती है। आपाधापी के इस युग में भी अधिकाँश पत्रकार साथी पूरी इमानदारीसे अपने काम में लगे हुए हैं,वे बधाई के पात्र हैं। कलेक्टर ने कहा कि में अनिल सक्सेना को बधाई देता हूं कि उन्होने चित्तौडगढ जिले में प्रदेष की मीडिया कार्यशाला आयोजित कर मुझे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया।
बूंदी राजस्थान के जिला प्रमुख राजेश बोयत ने बताया कि ये वही चौथा स्तंभ है जिसके बूते सरकारें तक आती-जाती हुए दिखती है । मीडियाकर्मी यदि न्यायसंगत बात को असल रूप में समाज के सामने रखने की जोखिम उठाता है तो उसे महफूज रखने का दायित्व भी समाज का ही होना चाहिए। दैनिक और जरूरी आवश्यकताओं के पूरने के बाद ही मीडिया साथी भली प्रकार से अपना दायित्व निभा सकेगा ये बात हमें भूलनी नहीं चाहिए।
सेवानिवृत जनसंपर्क अधिकारी और स्वतंत्र पत्रकार नटवर त्रिपाठी के अनुसार आज केवल सूचनाओं का अम्बार लगा देना ही मीडिया का सरोकार नहीं रह गया है.क्योंकि कई बार ये सूचनाएं समुदाय की जरूरतें पूरी नहीं करती। ऐसे में कई बार अनुत्तरित प्रश्न पीछे छूट जाते हैं। कम्प्यूटर और विज्ञान की इस क्रान्ति के बाद से ये देखा गया है कहीं न कहीं हमारी अपनी भारतीयता खत्म हो गयी है.गौरतलब बात ये है कि बच्चों के लिए स्कूल से ज्यादा समय ये टी.वी. खा जाती है.इन हालातों में मीडिया का रोल बढ़ जाता है। शहरों में अनवरत मिल रही सुविधाओं को गाँव तक ले जाने में मीडिया की अहम् भूमिका हो सकती है. एक और जरूरी बात कि आजकल सभी तरफ हम मूल्यों में गिरावट और संक्रमण की बात करते नजर आते हैं मगर उनका असल मूल्यांकन कोई नहीं करता।
मुझे ये भी लगता है कि बड़े अखबारों के साथ ही छोटे अखबारों में सम्पादकीय जैसा कुछ छपना चाहिए.इस पूरे मामले में प्रेस काउन्सिल को भी कड़े कानून बनाने की जरूरत है.कितनी अजीब बात है कि आजकल सभी बड़े मीडिया हाउस कोर्पोरेट जगत की तर्ज पर चल रहे हैं.उनके लक्ष्य भी कुछ बदले बदले हैं.बड़ी चिंता की बात ये भी है कि अधिकाँश पत्रकार आज भी मेहनत करने के बजाय सरकारी या सामाजिक संस्थाओं के प्रेस नोट के भरोसे अपनी खबरें छापते हैं। और इसी में अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते प्रतीत होते हैं।
प्रदेशाध्यक्ष ईशमधु तलवार ने श्रमजीवी पत्रकार संघ की कार्यशालाएं प्रत्येक जिले में आयोजित करने का वादा करने के साथ ही कहा कि आज सभी तरफ बाजारवाद का प्रभाव है जहां उस्ताद फहीमुद्दीन डागर और उस्ताद असद अली खाद और रुकमा देवी मांगनियार जैसे कलाकारों के नहीं रहने की खबर तक नहीं बनती । यहाँ जो बिकता है वही दिखता है. भाजपा जिलाध्यक्ष सी.पी.जोशी ने अपने भाषण में कहा कि व्यवस्था से जनता का विश्वास लगभग उठ गया है । आना हजारे के आन्दोलन में मीडिया के रोल से देश में एक ईमानदार माहौल बना है.पत्रकार जैसा प्राणी पूरे समय समाज के हित लगा रहता है.तो उसके हिस्से की चिंता भी समाज की अपनी चिंता होनी चाहिए। नगर पालिका उपाध्यक्ष और एस.बी.एन. चौनल निदेशक संदीप शर्मा के बयान की माने तो विश्व की सबसे बड़ी संसद भारतीय लोकतंत्र में आज जनता का सर्वाधिक विश्वास मीडिया में है ओर अखबारों की बात लेते हैं। इसकी विश्वनीयता का बने रहना बेहद जरूरी है. स्थानीय विधायक सुरेन्द्र सिंह जाड़ावत ने कहा कि आज मीडिया नेताओं और औधोगिक घरानों तक को नहीं छोड़ता,समय आने पर उन्हें भी सचाई की राह दिखाता है.आन्दोलन हो, आपातकाल हो या कि फिर आतंकवाद जैसे हालात, पत्रकार हमेशा अपनी राह पर अडीग नजर आता है.उसकी सचाई ही उसकी असली ताकत है उसके बगैर जनता भी उसका साथ छोड़ने में देर नहीं करती।
वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र गुंजल,फिल्म निर्माता और समीक्षक रामकुमार सिह, डाक्टर दुष्यन्त सिंह सहित पूरे कार्यक्रम में राज्यभर के चुनिन्दा पत्रकारों के साथ जिले के कई नामचीन पत्रकार सहित दिनेश प्रजापति के साथ नीमच, मध्यप्रदेश के पत्रकार भी शामिल हुए। वरिष्ठ पत्रकारों का अभिनन्दन-कार्यक्रम में जिले के 20 साल से भी ज्यादा अपनी सेवाएं दे रहे पत्रकारों का माल्यापर्ण और प्रतीक चिन्ह नवाज कर अभिनन्दन किया गया जिसमें दैनिक ललकार सम्पादक शरद मेहता,दैनिक नवज्योति संपादक गोविन्द त्रिपाठी, प्रातःकाल से नरेश ठक्कर,जय राजस्थान से हेमन्त सुहालका, स्वतंत्र पत्रकार और पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी नटवर त्रिपाठी,एस.बी.एन. टी.वी. चौनल के कैलाश सोनी और अजीत जैन को सम्मानित किया गया। कार्यशाला में नगर के पत्रकारों के अतिरिक्त भी कई शिक्षाविद,जानकार,आकाशवाणी के उदघोषक,शैक्षणिक संस्थाओं के प्रमुख और संस्कृतिकर्मी मौजूद थे.इस पूरी कार्यशाला के बीच में उपस्थित पत्रकारों और श्रोताओं ने आपसी संवाद से भी कई बातों पर चर्चा और विमर्श किया। अंत में कार्यशाला समन्वयक अनिल सक्सेना ने आभार व्यक्त किया। आयोजन का सम्पूर्ण संचालन मेवाड मीडिया वेलफेयर यूनियन की महासचिव ओर कार्यक्रम सह सयोंजिका शंकुतला सरूपरिया के साथ ही भीलवाड़ा की संस्कृति कर्मी,कुशल उदघोषिका और नृत्यांगना प्रतिष्ठा ठाकुर ने किया।
आयोजन में पत्रकारों की रोजी-रोटी के साथ ही उनकी सुरक्षा और मूलभूत आवश्यकताओं को लेकर भी मांगें पूरजोर तरीके से रखी गयी,जिन्हें मंच ने बहुत सोच के साथ साथ अपने उदबोधन में शामिल किया है.मंच पर जहां समाज के हर वर्ग से मौजूद प्रतिनिधि ने कार्यशाला को एक रूप में सम्पूर्ण आकार दे दिया.सामाजिक परिदृश्य से जुडी एक गजल और फिर माँ भारती पर केन्द्रित एक गजल के साथ ही मेवाड़ मीडिया वेलफेयर यूनियन की संभागीय सचिव और कुशल सूत्रधार शकुन्तला सरूपरिया ने कार्यशाला को आगाज दिया जिसे वक्ताओं ने अपने अनुभव और वाणी से उत्तरोत्तर गाढा किया।
भड़ास फॉर मीडिया के संस्थापक और संपादक यशवन्तसिंह ने कहा कि सत्य की परिभाषाएँ अनेक मिल जाएगी मगर सत्य कहीं नहीं मिलता। सच को लिखने की हिम्मत जुटाने वाले पत्रकार समय आने पर अपने मीडिया हाउस के चोंचलों में फंसते हुए अपने सिद्धान्तों से समझौता कर लेते हैं। वही कलम ईमानदारी से लम्बे समय तक चल सकती है जिसका आधार सच हो। कमोबेश यही कहना है कि हमें मीडिया, सत्ता, समाज और प्रशासन जैसा ऊपर से दिखता है, तस्वीर उससे कई अलग होती है। नैतिक मूल्यों की बातें उपरी लोगों के द्वारा निचले तबके के लागों के लिए दिया गया एक सोचा समझा दर्शन है। इस दौर में मेन स्क्रीन मीडिया के भरोसे न रहते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपने बूते न्यू मीडिया आन्दोलन से जुड़ना होगा, जिसमें ब्लॉग, कम्यूनिटी रेडियो, स्वयं के छोटे-छोटे अखबार शामिल हो सकते हैं. कई छोटी वेबसाईट भी बहुत कमाल का काम कर रही है और बड़े बड़े शोषक-शासकों को परेशान करके रख दिया है।
उन्होंने कहा कि मैं आपके बीच का ही आदमी हूँ.मुझे कोई लच्छेदार भाषण देना नहीं आता, न ही मैं कोई टी.वी. पर दिखने जैसा चेहरा लिए हूँ.सालों का अनुभव मेरे साथ है उसे ही आधार बनाकर अपनी बात रखता हूँ कि.यहाँ मीडिया जगत के खुद के भीतर क्या कुछ हो रहा है इसके फैलाव को देखते हुए हमनें भड़ास फॉर मीडिया नामक वेबपोर्टल के जरिए कुछ ठोस काम किया जिसे रोजाना लाखो हिट्स मिल रहे हैं. ये एक नवाचारी कदम है । जो कहीं न कहीं न्यू मीडिया की सशक्त उपज है।
इसी बीच से कुछ सालों से सिटिजन जर्नलिज्म का कोंसेप्ट भी उभरा है.जब पत्रकार ही धंधा करने लगे तो हर नागरिक को पत्रकार बन जाना चाहिए। अब पत्रकारिता को किसी के रहमोकरम पर नहीं छोड़ कर हमें अपना खुद का ब्लॉग बना सटीक तरीके से अपनी बात रखने का हुनर पालना होगा. एक बात और कि पत्रकारिता को पेशन के साथ करें वहीं आजीविका के लिए कोई और धंधा करें.
पी.आर. एजेंसियों को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि टेलेंटेड और भ्रष्टाचारी दोनों तरह के लोग जब मिल जाते हैं तो देश का बंटाधार तय है. दुःख इस बात का भी है कि अब तो मीडिया में ही भ्रष्टाचार आ गया है. कलम के दम पर सत्य लिख कर कोई खुले आम अगर घूम रहा है तो ये उसकी साफ नीयत का कमाल ही है. पेज थ्री परम्परा के पोषक शुरू से बड़े अखबार ही रहे हैं और वैसे भी अब सब कुछ पूंजी का खेल हो गया है. जहां पहूंचकर मीडिया का भी एजेंडा बदलने लगता है।
मीडिया,सरकार और जनता के बीच हमेशा मध्यस्थ रही है। मगर अब स्थितियां विलग है जहां मीडिया हाउस भी किसी उद्योग कंपनी की तरह मार्च के अंत में फायदे का बजट चाहते हैं। परिस्थितियाँ कुछ यूं भी बदली है कि सप्ताहभर में किए पचास स्ट्रिंग ओपरेशन में से अंत में पैतालीस तो मेनेज कर लिए जाते हैं और बाकी पांच जो मेनेज नहीं हो पाते उन्हें ब्रोडकास्ट कर या छापकर मीडिया हाउस सरोकार निभाने का दंभ भरते नजर आते हैं. भूत-प्रेत को लफ्फाजी दिखा-सुनाकर कब तक रेटिंग बटोरते रहेंगे, अन्तोगत्वा मीडिया जगत को ये बात समझ आ भी गयी कि जनता का भरोसा ही उनकी असल रेटिंग तय करती है इसलिए रेटिंग के बटोरने के मायने और रास्ते यथासमय पर बदले भी हैं।
मध्य प्रदेष सरकार के राजकीय अतिथि बालयोगी उमेशनाथ जी महाराज ने उपस्थित पत्रकारों के साथ ही अन्य लोगों को वर्तमान परिपेक्ष्य में मीडिया की सार्थक भूमिका विषय पर दिए व्याख्यान पर प्रभावित किया । उन्होने कहा कि देश का ये दुर्भाग्य ही है कि हमने चिंतन-मनन छोड़ दिया है, समय ऐसा आ गया है कि मीडिया का साथी अपनी कलम से कुछ लिखकर रात घर चल देता है मगर उसके लिखे पर अगली सुबह लाखों की संख्या पाठक में चिंतन-मनन-पठन करते हैं. इसलिए कलम का लिखा बहुत सधा हुआ और सोहा-समझा होना चाहिए। अब पत्रकारों को खुद ही निर्णय करना है कि उन्हें किस तरफ खडा होना है- कौरव, कंस और रावण की सेना में या कि फिर पांडवों की तरफ, मगर चिंता ये भी है कि आज देश में संत की वाणी और पत्रकार की कलम सबकुछ बिक जाता है,जो सबसे जरूरी हथियार हो सकते थे, लेकिन ऐसा नही है आज भी ईमानदारी है ओर ईमानदार पत्रकार के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी इन्सान ईमानदार है। बालयोगी ने कहा कि आज भी मीडिया की विष्ववनियता बनी हुई है ओर पत्रकारों को छोटे लाभ के चक्कर में पडकर अपने मूल आधार को नही खोना चाहिए। बिडला सीमेंट के सयुंक्त अध्यक्ष ओर समाजसेवी निरंजन नागौरी ने कहा कि हमें ये बात नहीं बुलानी चाहिए कि पत्रकार भी कई बार द्वंद्व की स्थिति में आ खड़ा होता है.ऐसे में उसका निर्णय बहुत मायने रखते हुए के लोगों को प्रभावित करता है.हम ये बात भी स्वीकारते हैं कि देश में जवाहर लाला नेहरू विश्वविद्यालय या कॉफी हाउस में बौद्धिक चिंतन के के दौर चलते हैं,मगर अंत ठीक हमेशा की तरह ही होता है।
वर्तमान में इंडिया न्यूज से जुडे अतुल अग्रवाल के अनुसार पत्रकारों की असल स्थिति बयान करते हुए कहा कि पत्रकार कोई आदर्शवादी जीव नहीं है, वह कोई मिशन नहीं बल्कि प्रोफेशन का आदमी है। सामाजिक सरोकारों की जिम्मेदारी केवल पत्रकार के माथे थोप कर उसे उसकी खुद की पारिवारिक जिम्मेदारियों से अलग नहीं देखा जाना चाहिए। पत्रकारों के लिए भी न्यूनतम मजदूरी जैसा कोई कॉन्सेप्ट जरूरी होने की बात अग्रवाल ने पूरजोर तरीके से रखी।
उन्होने कहा कि अन्ना हजारे की आन्दोलन में मीडिया ने कोई बड़ा काम नहीं बल्कि अपना धंधा चमकाया है.ये बहुत पुरानी बात हो गयी है.नई बात तो ये है कि सूचना का प्रजातंत्रीकरण हो गया हैं.इस नए मीडिया युग में आप देखेंगे कि कुछ मीडिया हाउस घरानों को तो खरीदा जा सकेगा मगर तब न्यू मीडिया की उपज इन ब्लॉग लिखने वाले लाखों कलमकारों को खरीद सकना मुमकिन नहीं होगा। असल में इस जुगाड़ को तोड़ने की कवायद ही है न्यू मीडिया इसमें भी दो बात हो सकती है कि लोग आगे जाकर कहे कि ये फुकट की पत्रकारिता कब तक ? कहीं न कहीं ये सवाल पहले अपनी रोजी-रोटी की जरूरतें पूरी करने पर जाकर खत्म होता है।
अग्रवाल ने कहा कि इन सब हालातों में भी पत्रकार और ठेकेदार में अंतर कायम रहना जरूरी है। नौकरी और सरोकार में फर्क समझ आना जरूरी है.अतुल अग्रवाल अपने लहेजे में कहते हैं कि हम पत्रकार अन्ना हजारे और गांधी नहीं है। हम भी एक सामान्य इंसान है हमें महिमामंडित कर बड़ा नहीं बनाया जाए.ये मेरी नजर में ये भी महज एक नौकरीभर है,जैसे और नौकरियाँ होती आई है। आखिर में ये ही कहूंगा कि पत्रकारिता केवल जीवन का जुगाड़ है.दो जून की रोटी कमाने का जरिया भर है।
इसी बीच एक श्रोता स्थानीय शिक्षाविद डॉ. ए. एल.जैन के सवाल पर उन्होंने अपने वक्तव्य में कुछ जोड़ते हुए ये कहा कि ये बात भी सच है कि तनख्वाहें बढ़ जाने से भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होगा। सही मायने में ये सबकुछ नीयत का मामला है। न्यूनतम मजदूरी हो या लाखों की पगार,नीयत बिगड़ने पर वही सब सरोकार गौण हो जाते हैं।
अग्रवाल ने कहा कि पिछले चौदह सालों में नौ टी.वी.चौनल में काम करने का तजुर्बा है,और उसके बलबूते कह सकता हूँ कि देश के कई गणमान्य लोग टी.वी. पर फुकट का ज्ञान परोसते नजर आते हैं। आठ दस लाख की महीनावार पगार पाते हैं। बिना किसी का नाम लिए अतुल अग्रवाल ने कहाँ कि इसी देश में कुछ संपादकों की गेंग हैं जिसे दंडवत किए बगैर लोगों के नौकरी नहीं चल सकती है।
जिला कलेक्टर रवि जैन ने भी अपनी बात में कहा कि इन बीते सालों में पत्रकारिता बहुत प्रखर होकर निखरी है। आज पत्रकार प्रशासन से भी दो कदम आगे जाकर काम कर रहा है। लेकिन कई बार इस व्यवसाय में पावर और पैसे की भूख आदमी को ब्लेकमेलिंग के धंधे में जा बिठाती है। आपाधापी के इस युग में भी अधिकाँश पत्रकार साथी पूरी इमानदारीसे अपने काम में लगे हुए हैं,वे बधाई के पात्र हैं। कलेक्टर ने कहा कि में अनिल सक्सेना को बधाई देता हूं कि उन्होने चित्तौडगढ जिले में प्रदेष की मीडिया कार्यशाला आयोजित कर मुझे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया।
बूंदी राजस्थान के जिला प्रमुख राजेश बोयत ने बताया कि ये वही चौथा स्तंभ है जिसके बूते सरकारें तक आती-जाती हुए दिखती है । मीडियाकर्मी यदि न्यायसंगत बात को असल रूप में समाज के सामने रखने की जोखिम उठाता है तो उसे महफूज रखने का दायित्व भी समाज का ही होना चाहिए। दैनिक और जरूरी आवश्यकताओं के पूरने के बाद ही मीडिया साथी भली प्रकार से अपना दायित्व निभा सकेगा ये बात हमें भूलनी नहीं चाहिए।
सेवानिवृत जनसंपर्क अधिकारी और स्वतंत्र पत्रकार नटवर त्रिपाठी के अनुसार आज केवल सूचनाओं का अम्बार लगा देना ही मीडिया का सरोकार नहीं रह गया है.क्योंकि कई बार ये सूचनाएं समुदाय की जरूरतें पूरी नहीं करती। ऐसे में कई बार अनुत्तरित प्रश्न पीछे छूट जाते हैं। कम्प्यूटर और विज्ञान की इस क्रान्ति के बाद से ये देखा गया है कहीं न कहीं हमारी अपनी भारतीयता खत्म हो गयी है.गौरतलब बात ये है कि बच्चों के लिए स्कूल से ज्यादा समय ये टी.वी. खा जाती है.इन हालातों में मीडिया का रोल बढ़ जाता है। शहरों में अनवरत मिल रही सुविधाओं को गाँव तक ले जाने में मीडिया की अहम् भूमिका हो सकती है. एक और जरूरी बात कि आजकल सभी तरफ हम मूल्यों में गिरावट और संक्रमण की बात करते नजर आते हैं मगर उनका असल मूल्यांकन कोई नहीं करता।
मुझे ये भी लगता है कि बड़े अखबारों के साथ ही छोटे अखबारों में सम्पादकीय जैसा कुछ छपना चाहिए.इस पूरे मामले में प्रेस काउन्सिल को भी कड़े कानून बनाने की जरूरत है.कितनी अजीब बात है कि आजकल सभी बड़े मीडिया हाउस कोर्पोरेट जगत की तर्ज पर चल रहे हैं.उनके लक्ष्य भी कुछ बदले बदले हैं.बड़ी चिंता की बात ये भी है कि अधिकाँश पत्रकार आज भी मेहनत करने के बजाय सरकारी या सामाजिक संस्थाओं के प्रेस नोट के भरोसे अपनी खबरें छापते हैं। और इसी में अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते प्रतीत होते हैं।
प्रदेशाध्यक्ष ईशमधु तलवार ने श्रमजीवी पत्रकार संघ की कार्यशालाएं प्रत्येक जिले में आयोजित करने का वादा करने के साथ ही कहा कि आज सभी तरफ बाजारवाद का प्रभाव है जहां उस्ताद फहीमुद्दीन डागर और उस्ताद असद अली खाद और रुकमा देवी मांगनियार जैसे कलाकारों के नहीं रहने की खबर तक नहीं बनती । यहाँ जो बिकता है वही दिखता है. भाजपा जिलाध्यक्ष सी.पी.जोशी ने अपने भाषण में कहा कि व्यवस्था से जनता का विश्वास लगभग उठ गया है । आना हजारे के आन्दोलन में मीडिया के रोल से देश में एक ईमानदार माहौल बना है.पत्रकार जैसा प्राणी पूरे समय समाज के हित लगा रहता है.तो उसके हिस्से की चिंता भी समाज की अपनी चिंता होनी चाहिए। नगर पालिका उपाध्यक्ष और एस.बी.एन. चौनल निदेशक संदीप शर्मा के बयान की माने तो विश्व की सबसे बड़ी संसद भारतीय लोकतंत्र में आज जनता का सर्वाधिक विश्वास मीडिया में है ओर अखबारों की बात लेते हैं। इसकी विश्वनीयता का बने रहना बेहद जरूरी है. स्थानीय विधायक सुरेन्द्र सिंह जाड़ावत ने कहा कि आज मीडिया नेताओं और औधोगिक घरानों तक को नहीं छोड़ता,समय आने पर उन्हें भी सचाई की राह दिखाता है.आन्दोलन हो, आपातकाल हो या कि फिर आतंकवाद जैसे हालात, पत्रकार हमेशा अपनी राह पर अडीग नजर आता है.उसकी सचाई ही उसकी असली ताकत है उसके बगैर जनता भी उसका साथ छोड़ने में देर नहीं करती।
वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र गुंजल,फिल्म निर्माता और समीक्षक रामकुमार सिह, डाक्टर दुष्यन्त सिंह सहित पूरे कार्यक्रम में राज्यभर के चुनिन्दा पत्रकारों के साथ जिले के कई नामचीन पत्रकार सहित दिनेश प्रजापति के साथ नीमच, मध्यप्रदेश के पत्रकार भी शामिल हुए। वरिष्ठ पत्रकारों का अभिनन्दन-कार्यक्रम में जिले के 20 साल से भी ज्यादा अपनी सेवाएं दे रहे पत्रकारों का माल्यापर्ण और प्रतीक चिन्ह नवाज कर अभिनन्दन किया गया जिसमें दैनिक ललकार सम्पादक शरद मेहता,दैनिक नवज्योति संपादक गोविन्द त्रिपाठी, प्रातःकाल से नरेश ठक्कर,जय राजस्थान से हेमन्त सुहालका, स्वतंत्र पत्रकार और पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी नटवर त्रिपाठी,एस.बी.एन. टी.वी. चौनल के कैलाश सोनी और अजीत जैन को सम्मानित किया गया। कार्यशाला में नगर के पत्रकारों के अतिरिक्त भी कई शिक्षाविद,जानकार,आकाशवाणी के उदघोषक,शैक्षणिक संस्थाओं के प्रमुख और संस्कृतिकर्मी मौजूद थे.इस पूरी कार्यशाला के बीच में उपस्थित पत्रकारों और श्रोताओं ने आपसी संवाद से भी कई बातों पर चर्चा और विमर्श किया। अंत में कार्यशाला समन्वयक अनिल सक्सेना ने आभार व्यक्त किया। आयोजन का सम्पूर्ण संचालन मेवाड मीडिया वेलफेयर यूनियन की महासचिव ओर कार्यक्रम सह सयोंजिका शंकुतला सरूपरिया के साथ ही भीलवाड़ा की संस्कृति कर्मी,कुशल उदघोषिका और नृत्यांगना प्रतिष्ठा ठाकुर ने किया।
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