Dr। Vaidik
10 मार्च 2012: श्रीमती सोनिया गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार के बाद पत्रकार-वार्ता की, यह अपने आप में सराहनीय पहल थी| वरना ऐसी दर्दनाक घटनाओं के बाद अक्सर नेताओं की बोलती बंद हो जाती है| स्वयं सोनिया गांधी नेता हों या न हों, कांग्रेस की अध्यक्ष तो हैं ही| वे कुछ बोलीं, यह बड़ी बात है|उनकी यह बात, जो उन्होंने हंसते हुए ही कही, कि कांग्रेस की समस्या यह है कि उसके पास नेता ही नेता हैं, बड़ी विचारोत्तेजक है| यह बात एक कोण से देखें तो बिल्कुल सही है| और अगर दूसरे कोण से देखें तो बिल्कुल गलत है| आइए, हम दोनों कोणों से उसे देखें|उत्तर प्रदेश को ही लें| इस प्रदेश में निश्चय ही कांग्रेस के पास लगभग आधा दर्जन ऐसे नेता थे, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते थे लेकिन उसके मुकाबले बसपा और सपा के पास कितने नेता थे? (यहां भाजपा की बात जाने दीजिए| सोनिया के भतीजे वरूण गांधी ने ज्यादा गलत नहीं कहा कि भाजपा के पास मुख्यमंत्री के 55 दावेदार हैं|) कांग्रेस के पास प्रदेश के बाहर के भी कई छोटे—मोटे नेता थे लेकिन सब ने मिलकर पार्टी की लुटिया डुबा दी| नेता ही नेता!
यहां केंद्रीय प्रश्न यह है कि जिन्हें हम नेता कह रहे हैं, क्या जनता उन्हें नेता समझती है? उसकी नजर में वे नेता नहीं, अ-नेता हैं| वे एक राष्ट्रीय प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के बाबू हैं| इन बाबुओं को बड़े बबुआ की शान में कसीदे पढ़ते हुए देखकर जनता पर कैसा असर हुआ होगा? लोग अपने दांतों तले उंगली दबाकर सोचते थे कि भोले बबुआ की दादी और नानी की उम्र के लोग उसके तलवे क्यों चाट रहे हैं? ऐसे तलवेचाटू लोगों को कोई नेता कैसे मान सकता है?कांग्रेस का दुर्भाग्य तो यह है कि उसके पास एक से एक योग्य और अनुभवी लोग हैं लेकिन वे सब कुंभकर्णी मुद्रा में चले गए हैं| उन सबने अपना अंगूठा कटा लिया है| वे सब सामूहिक एकलव्य बन गए हैं और जिनके हाथ में धनुष और प्रत्यंचा है, वे जनता को विदूषक से ज्यादा कुछ नहीं लगते| वे नेता नहीं, अभिनेता हैं| उत्तर प्रदेश की जनता ने इसी सत्य पर मुहर लगाई है| कांग्रेस नेताओं की नहीं, अ-नेताओं की पार्टी बन गई है| भारत में अगर कोई नेतामार पार्टी है तो वह कांग्रेस ही है|
यहां केंद्रीय प्रश्न यह है कि जिन्हें हम नेता कह रहे हैं, क्या जनता उन्हें नेता समझती है? उसकी नजर में वे नेता नहीं, अ-नेता हैं| वे एक राष्ट्रीय प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के बाबू हैं| इन बाबुओं को बड़े बबुआ की शान में कसीदे पढ़ते हुए देखकर जनता पर कैसा असर हुआ होगा? लोग अपने दांतों तले उंगली दबाकर सोचते थे कि भोले बबुआ की दादी और नानी की उम्र के लोग उसके तलवे क्यों चाट रहे हैं? ऐसे तलवेचाटू लोगों को कोई नेता कैसे मान सकता है?कांग्रेस का दुर्भाग्य तो यह है कि उसके पास एक से एक योग्य और अनुभवी लोग हैं लेकिन वे सब कुंभकर्णी मुद्रा में चले गए हैं| उन सबने अपना अंगूठा कटा लिया है| वे सब सामूहिक एकलव्य बन गए हैं और जिनके हाथ में धनुष और प्रत्यंचा है, वे जनता को विदूषक से ज्यादा कुछ नहीं लगते| वे नेता नहीं, अभिनेता हैं| उत्तर प्रदेश की जनता ने इसी सत्य पर मुहर लगाई है| कांग्रेस नेताओं की नहीं, अ-नेताओं की पार्टी बन गई है| भारत में अगर कोई नेतामार पार्टी है तो वह कांग्रेस ही है|
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