Dr. वैदिक
03 मार्च 2012: यह खबर तो एक ही है लेकिन इसे कोई अच्छी भी कह सकता है और कोई बहुत बुरी भी! इस समय भारत में दो करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो अंग्रेजी-माध्यम के स्कूलों में पढ़ रहे हैं| आठ साल पहले इनकी संख्या मुश्किल से 60-65 लाख थी| इस अंग्रेजी-प्रेम की व्याख्या आप कैसे करेंगे? अपने बच्चों को लोग अंग्रेजी-माध्यम के स्कूलों में क्यों ठेल रहे हैं| किसी भी विषय को यदि आप किसी विदेशी भाषा के माध्यम से पढ़ें तो क्या आप उसे ज्यादा आसानी से सीख लेते हैं या उसे क्या आप ज्यादा जल्दी सीख लेते हैं? क्या अंग्रेजी आपके बच्चों को अधिक संस्कारवान या बेहतर इंसान बनाती है? यदि आप अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं तो क्या उनकी फीस माफ होती है? जिन देशों के बच्चे विदेशी भाषा — अंग्रेजी या अन्य – के माध्यम से पढ़ते हैं क्या वे देश बहुत संपन्न और महाशक्ति बन जाते हैं?
इन सब प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक है| विदेशी भाषा के माध्यम से पढ़ने पर बच्चों का दिमाग कमजोर हो जाता है| उनका ध्यान विषय सीखने में जितना लगता है, उससे ज्यादा विदेशी भाषा में निपटने में बर्बाद होता है| वे रट्रटू तोते बन जाते हैं| उनकी मौलिकता घट जाती है या नष्ट हो जाती है| उन्हें अनेक मानसिक बीमारियां हो जाती हैं| यदि वे ही विषय उन्हें उनकी मातृभाशा में पढ़ाएं जाएं तो वे उन्हें बहुत जल्दी सीखते हैं| दुनिया के किसी भी मालदार और शक्तिशाली देश के बच्चों को विदेशी भाषा के माध्यम से नहीं पढ़ाया जाता| सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य – अमेरिका, बि्रटेन, रूस, फ्रांस और चीन पर यह बात लागू होती है| जर्मनी, जापान, स्वीडन, ब्राजील आदि देश भी अपने बच्चों को अपनी भाषाओं के माध्यम से पढ़ाते हैं| सिर्फ अंग्रेजों के पूर्व गुलाम देशों – भारत और पाक जैसे – में विदेशी भाषा का माध्यम चलता है|
यह बच्चों पर होने वाला सबसे कठोर और सूक्ष्म अत्याचार है| इस पर तुरंत प्रतिबंध लगना चाहिए| यह हमारे बच्चों को पश्चिम का नकलची और पिछलग्गू बनाने का अदृश्य षडयंत्र् है| अंग्रेजी माध्यम से चलने वाले स्कूल शिक्षा के केंद्र नहीं हैं, यह अंधाधुंध मुनाफा लूटनेवाली दुकानें हैं| यह सब जानते हुए भी लोग अपना पेट काटकर अपने बच्चों को इसीलिए इन स्कूलों में भेजते हैं कि वे सरकारी नौकरियां आसानी से हथिया सकें| यदि समस्त नौकरियों से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटा ली जाए तो कौन मूर्ख माता-पिता होंगे, जो अपने हिरणों पर घास लादेंगे?
यह बच्चों पर होने वाला सबसे कठोर और सूक्ष्म अत्याचार है| इस पर तुरंत प्रतिबंध लगना चाहिए| यह हमारे बच्चों को पश्चिम का नकलची और पिछलग्गू बनाने का अदृश्य षडयंत्र् है| अंग्रेजी माध्यम से चलने वाले स्कूल शिक्षा के केंद्र नहीं हैं, यह अंधाधुंध मुनाफा लूटनेवाली दुकानें हैं| यह सब जानते हुए भी लोग अपना पेट काटकर अपने बच्चों को इसीलिए इन स्कूलों में भेजते हैं कि वे सरकारी नौकरियां आसानी से हथिया सकें| यदि समस्त नौकरियों से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटा ली जाए तो कौन मूर्ख माता-पिता होंगे, जो अपने हिरणों पर घास लादेंगे?
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