1. हिन्दी हमारी मातृभाषा है।
हमें हिन्दी वासियों से यह अभिलाषा है।
वे माँ के महत्व को बढाये,
अग्रेंजी का कलंक उसके मस्तक से हटायें।
कैसा न्याय है।
विदेशी घर में विश्राम करें।
माता दर - दर की ठोंकरें खाये।
2. कल मैनें राह पर,
एक वृद्धा को रोते पाया।
फटे चिथड़ों में, ठड़ से मिठुरते पाया।
मैने पूछा माता तुम कौन हो।
और क्यों रोती हो।वह बोलीः-,
में इस राष्ट्र की भाषा हिन्दी हूँ,
अग्रेजी की प्रतिद्वन्द्वी हूँ।
‘‘इसलिये मुझे घर से निकाल दिया है।
स्वजनों ने ही मेरा अपमान किया है।
इसलिये मैं रोती हूँ, इसी राह पर सोती हूँ।
राहगीरो की बाट जौती हूँ।
‘‘ कि - कभी तो मेरा लाल आयेगा
मेरी प्रतिद्वन्द्वी को दूर भगाकर,
मेरा खोया सम्मान वापस दिलाकर
मुझे इस राष्ट्र की भाषा बनायेगा.‘‘
जय श्री शक्तावत
चित्तौड़गढ़
Blogger Comment
Facebook Comment