पृथ्वी पर मनुष्य योनि मे भेजने से पहले सृष्टिकर्ता ने उस आत्मा से कहां है। भव्यात्मा। तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मो की उत्कृष्टता को देखते हुए तुम्हे ऐसे घर मे भेजा जा रहा है जहां कदम कदम पर इज्जत शोहरत दौलत सुख - शक्ति और ऐशो - आराम बिखरा पड़ा है। तुम्हारा जीवन एकदम आराम से बीतेगा ताउम्र कोई परेशानी नही होगी उपर से ही कथित आत्मा ने उस घर का अवलोकन कर प्रसन्नता तो जाहिर की पर उस परिवार मे जन्म लेने स्पष्ट इंकार करते हुए अपने विचारो को यु व्यक्त किए है नाथ। जहंा बच्चो पर दोस्त बनाने पैदल स्कुल जाने धुल मिट्टी मे खेलने कुदने शरारत करने पर पूर्णतिया पाबंदी हो साथ ही बचपन को केवल पढाई का पर्याय बना दिया जाए ऐसे मानव जन्म का भला क्या औचित्य जिसमे बचपन ही न हो उसकी बाते सुन सृष्टिकर्ता को भी एहसास हुआ कि वास्तव मे बच्चे ही नही बचपन भी किताबो की धरोहर बनता जा रहा है।
प्रिंस शर्मा
Blogger Comment
Facebook Comment