उज्जैन 03 अप्रैल। आस्था और विश्वास की शक्ति लेकर उज्जैन के नाग चन्द्रेश्वर मंदिर पर नारियल अर्पित कर हजारों श्रद्धालु ने पंचक्रोशी यात्रा शुरू कि थी जिसका कारवा बड़ता गया और श्रद्धालु आज तीसरे दिन कलियादेय में पहुंचकर आस्था कि डुबकी लगाई क्षिप्रा स्नान के बाद यात्रा की सफलता के लिये नागचंद्रेश्वर से शक्ति का वरदान प्राप्त कर लगातार 5 दिन में पूरी 118 किलोमीटर की पैदल यात्रा करेंगे। यात्रा में शामिल होने के लिये उज्जैन अंचल के ही नहीं बल्कि देश के कौने-कौने से श्रद्धालु पहूंच रहे हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर के पुजारी पं. अशोक महाराज ने बताया कि इस वर्ष महांकुभ होने के कारण पंचक्रोशी यात्रा का विशेष महत्व है। श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये कम से कम ३,५,७ बार यात्रा करने कि मनोती मानते है। इस का पूरा विश्वास है कि उसे भगवान महाकाल अवश्य पूरी करते है। यात्रा के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के संबंध में उन्होंने बताया कि भारत के प्रमुख द्वादश ज्यातिर्लिंग में उज्जैन में श्री महाकाल विराजीत है। एक बार भगवान महादेव से माँ पार्वती ने बड़े हर्ष से कहा कि मुझे ऐसा रमणीय स्थल जो अत्याधिक आंनद देने वाला हो तथा प्रलय में भी नष्ट न हो तब महादेव ने कहा कि स्वर्ग से भी अधिक सुंदर रमणीय भक्ति व मुक्ति देने वाला महाकाल वन है। जो जहां देव-गंधर्व सिद्धि व मुक्ति की इच्छा सेनिवास करते है। ऐसा स्थान मैने तुम्हारी प्रसन्नता के लिये निर्मित किया है। जो सब तीर्थों का तिलक है। महाकालेश्वर मध्य में स्थित है। तीर्थ की चारों दिशाओं में क्षेत्र की रक्षा के लिये महादेव ने चार द्वारपाल शिवरूप में स्थापित किये जो धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्रदाता हैं। इसका उल्लेख स्कंदपुराण अंतर्गत अवन्तिखण्ड में मिलता है। इन्ही चार द्वारपाल की कथा पूजा विधान में इष्ट का विशेश महत्व है पंचक्रोशी के मूल में इसी विधान की भावना है। पंचक्रोशी यात्रा में शिव के पूजन अभिषेक उपवास दर्शन की ही प्रधानता धार्मिक ग्रंथों में मिलती है। स्कंदपुराण के अनुसार अवन्तिका के लिये वैशाखा मास अत्यंत पुनीत है इसी वैशाख मास के मेष के मेषस्थ सूर्य में वैशाख कृष्ण दशमी से अमावस्या तक इस पुनीत पंचक्रोशी यात्रा का विधान है। उज्जैन का आकार चैकोर है क्षेत्र के रक्षक देवता श्री महाकेश्वर का स्थान मध्य बिन्दु में है इस बिन्दु के अलग-अलग अंतर में मंदिर स्थित है जो द्वारपाल कहलाते हैं। इनमें पूर्व में पिंग्लेश्वर दक्षिण में कायावरोहणेश्वर पश्चिम में बिल्वकेश्वर तथा उत्तर में दुर्दश्वर महादेव के मंदिर स्थापित हैं जो 84 महादेव मंदिर श्रृंखला के अंतिम चार मंदिर है।पंचक्रोशी यात्रा के दौरान श्रद्धालु बीच-बीच में भजन क्रितन करते हुये ढोल ढमाके की थाप पर नाचते देखे गये। भजन मंडली में बच्चों ने हारमोनियम में संगत देते हुये बुजुर्गों को नाचते के लिये प्रेरित किया। यात्रा के दौरान खाने पीने की समस्त सामग्रियों के साथ पड़ाव में बाट्टिया बनाकर सहभोज किया। तीर्थ यात्रियों ने बताया कि महाकुम्भ के इस पर्व से बड़ा पर्व या उत्सव इस अंचल में दूसरा कोई नहीं होता। यात्रा का समापन नागचंद्रेश्वर मंदिर पर घोड़ा (मिट्टी) चढ़ाकर होता है। ऐतिहासिक काल में राजा महाराजा अपने अस्तवल के घोड़े इस मंदिर पर छोड़ जाते थे। जिसका अभिलेख इतिहास के पनों पर मिलता है।
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