उज्जैन सिंहस्थ महापर्व के अंतिम शाही स्नान में हजारों साधु-संतों का उज्जैन के दत्त अखाड़ा घाट एवं रामघाट सहित विभिन्न घटों पर रात्रि 3 बजे से व्यवस्थित तरीके से निर्धारित समय पर आगमन शुरू हुआ। विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत बड़ी धूमधाम से अपने-अपने अखाड़ों से घोड़ा-हाथी तथा बैण्ड-बाजों के साथ रथ पर सवार होकर क्षिप्रा के रामघाट एवं दत्त अखाड़ा घाट तटों पर पहुंचे और उन्होंने अमृत स्नान कर पूण्य लाभ प्राप्त किया। जिला प्रशासन एवं मेला प्रशासन द्वारा की गयी चाकचौबद व्यवस्था से साधु-संतों को किसी प्रकार की कठिनाई महसूस नहीं हुई। दत्त अखाड़ा एवं क्षिप्रा का तट रात्रि में भी दिन की तरह चमचमाता हुआ दिखाई दिया। रास्ते में लाखों श्रद्धालु ने साधु-संतों को देखने हेतु टकटकी लगाये रहे और सामने से गुजरते ही उनका अभिवादन किया। अखाड़े के महंतों ने भी श्रद्धालुओं का हाथ हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया। तटों पर साधु-संतों एवं उनके अनुयायिओं द्वारा शस्त्र कलाओं का प्रदर्शन कर सभी को अचंभित किया। प्रशासन द्वारा निर्धारित किये गये समय के अनुरूप अखाड़े के समस्त साधु-संतों ने शाही स्नान किया एवं नाचते गाते हुये अपने मुकाम की ओर रवाना हुये। उस समय का दृश्य श्रद्धालुओं के लिये यादगार क्षण बना। सिंहस्थ महापर्व के अंतिम शाही स्नान के दौरान साधु-संतों के अमृत स्नान के पश्चात देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने दत्त अखाड़ा, रामघाट सहित विभिन्न घाटों में आस्था एवं विश्वास की डुबकी लगायी। महाकाल की नगरी उज्जैन का नजारा विश्व के सबसे बड़े समारोह जैसा दिखाई दिया। असहाय, दिव्यांग, बुजुर्गों को कंधा देते हुये श्रद्धाभाव से अमृत स्नान कराने में श्रद्धालुओं ने कोताही नहीं बरती । ग्राम नौखढ जिला सतना के शिव भक्त श्री गणेश शुक्ला, पत्नी श्रीमती सुलोचना शुक्ला, शिवपुर्वा के श्री तरूणेन्द्र द्विवेदी, अनुपपूर से आये महाकांल के भक्त श्री रामलखन तिवारी, छत्तीसगढ़ के ग्राम सूरजपुर से आये रामविलास पाण्डे ने बताया कि टेलिविजन, अखबारों में उज्जैन के महाकांल एवं क्षिप्रा मॉं की गाथायें पूर्व में सुनी तथा देखी। तभी से महांकाल का दर्शन एवं मॉं क्षिप्रा में अमृत स्नान एवं आचमन करने के लिये सपरिवार अंतर्मन से आने की योजना बनायी थी। श्रीमती सुलोचना शुक्ला ने बताया कि इतना सोचा नहीं था उससे कहीं लाखों गुना आनंद महांकाल की नगरी उज्जैन में स्नान और दर्शन से हुआ है। उज्जैन का विहंगम दृश्य एवं श्रद्धालुओं के महासंगम से निश्चित रूप से अमृतरूपी वर्षा के रूप में महसूस किया।
पवित्र शिप्रा में श्रद्धालुओं ने स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त किया विश्व के सबसे बड़े धार्मिक समारोह में श्रद्धालुओं का महासंगम
उज्जैन सिंहस्थ महापर्व के अंतिम शाही स्नान में हजारों साधु-संतों का उज्जैन के दत्त अखाड़ा घाट एवं रामघाट सहित विभिन्न घटों पर रात्रि 3 बजे से व्यवस्थित तरीके से निर्धारित समय पर आगमन शुरू हुआ। विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत बड़ी धूमधाम से अपने-अपने अखाड़ों से घोड़ा-हाथी तथा बैण्ड-बाजों के साथ रथ पर सवार होकर क्षिप्रा के रामघाट एवं दत्त अखाड़ा घाट तटों पर पहुंचे और उन्होंने अमृत स्नान कर पूण्य लाभ प्राप्त किया। जिला प्रशासन एवं मेला प्रशासन द्वारा की गयी चाकचौबद व्यवस्था से साधु-संतों को किसी प्रकार की कठिनाई महसूस नहीं हुई। दत्त अखाड़ा एवं क्षिप्रा का तट रात्रि में भी दिन की तरह चमचमाता हुआ दिखाई दिया। रास्ते में लाखों श्रद्धालु ने साधु-संतों को देखने हेतु टकटकी लगाये रहे और सामने से गुजरते ही उनका अभिवादन किया। अखाड़े के महंतों ने भी श्रद्धालुओं का हाथ हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया। तटों पर साधु-संतों एवं उनके अनुयायिओं द्वारा शस्त्र कलाओं का प्रदर्शन कर सभी को अचंभित किया। प्रशासन द्वारा निर्धारित किये गये समय के अनुरूप अखाड़े के समस्त साधु-संतों ने शाही स्नान किया एवं नाचते गाते हुये अपने मुकाम की ओर रवाना हुये। उस समय का दृश्य श्रद्धालुओं के लिये यादगार क्षण बना। सिंहस्थ महापर्व के अंतिम शाही स्नान के दौरान साधु-संतों के अमृत स्नान के पश्चात देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने दत्त अखाड़ा, रामघाट सहित विभिन्न घाटों में आस्था एवं विश्वास की डुबकी लगायी। महाकाल की नगरी उज्जैन का नजारा विश्व के सबसे बड़े समारोह जैसा दिखाई दिया। असहाय, दिव्यांग, बुजुर्गों को कंधा देते हुये श्रद्धाभाव से अमृत स्नान कराने में श्रद्धालुओं ने कोताही नहीं बरती । ग्राम नौखढ जिला सतना के शिव भक्त श्री गणेश शुक्ला, पत्नी श्रीमती सुलोचना शुक्ला, शिवपुर्वा के श्री तरूणेन्द्र द्विवेदी, अनुपपूर से आये महाकांल के भक्त श्री रामलखन तिवारी, छत्तीसगढ़ के ग्राम सूरजपुर से आये रामविलास पाण्डे ने बताया कि टेलिविजन, अखबारों में उज्जैन के महाकांल एवं क्षिप्रा मॉं की गाथायें पूर्व में सुनी तथा देखी। तभी से महांकाल का दर्शन एवं मॉं क्षिप्रा में अमृत स्नान एवं आचमन करने के लिये सपरिवार अंतर्मन से आने की योजना बनायी थी। श्रीमती सुलोचना शुक्ला ने बताया कि इतना सोचा नहीं था उससे कहीं लाखों गुना आनंद महांकाल की नगरी उज्जैन में स्नान और दर्शन से हुआ है। उज्जैन का विहंगम दृश्य एवं श्रद्धालुओं के महासंगम से निश्चित रूप से अमृतरूपी वर्षा के रूप में महसूस किया।
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