उज्जैन 20 मई। उज्जैन में आयोजित हो रही पंचक्रोशी यात्रा में दाल-बाटी ही दाल-बाटी के नजारे चहूओर दिखाई दे रहे हैं। दाल-बाटी का पंचक्रोशी में विशेष महत्व है। इस यात्रा में शामिल लगभग हर क्यक्ति सुबह शाम दोनों टाईम भोजन के लिए सिर्फ दाल-बाटी का ही उपयोग करते हुए दिखाई दे रहा है। श्रृद्धालुओं से पुछने पर पता चला कि पंचक्रोशी में दाल-बाटी का विशेष महत्व है। दाल-बाटी वैसे तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और यह भोजन हम भगवान के प्रसाद के रूप में भी ग्रहण करते हैं। यात्रा में शामिल लोगों ने बताया कि पंचक्रोशी यात्रा में पांचों दिन दाल-बाटी बनाई जाती है। दाल-बाटी बनाने के बाद इसका भोग शक्कर के साथ भगवान को
लगाते है, उसके बाद हम इसे खाते है। उन्होंने बताया कि दाल-बाटी बनाना बहुत आसान होता है। इसे बनाने में बर्तनों का उपयोग कम होता है। हल्दी, नमक डालकर एक थाली में आटा गूंथ लो फिर उसके गोले बनाकर कन्डे की आंच पर सेक लो। एक तपेली में दाल बना लो और इसके बाद सब अपनी-अपनी थालियों में मिल बाटकर खा लो। दाल-बाटी दोपहर को बना ली जाती है और फिर इसी दाल-बाटी का सेवन शाम को भी हम सब कर लेते हैं। देवास जिले के कल्लूखेड़ी गांव से आये सुभाषचंद्र पाटीदार और मानसिंह ने बताया कि हम 12 लोग परिवार सहित पंचक्रोशी यात्रा में आये हैं। हम सब मिलकर दाल-बाटी बना लेते हैं और उसे खाते हैं। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान बनाई गई दाल-बाटी का स्वाद ही एकदम अलग होता है।
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