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“सिंहस्थ के आनंद की जय” के घोष के साथ पूरी हुई विमान यात्रा


उज्जैन । इक्कीस मई की शाम इंदौर से दिल्ली आने वाली फ्लाइट का वातावरण सिंहस्थ मय था। दरअसल 21 मई को शाही स्नान था, इस अंतिम स्नान के साथ सिंहस्थ अपनी पूर्णता की ओर था। फ्लाइट में चढ़ रहे यात्रियों में से कई महाकाल का तिलक लगाये थे। कइयों ने प्रसाद के पेकेट-क्षिप्रा जल की केन आदरपूर्वक केबिन में अपने साथ रखी हुई थी।
विमान में अचानक स्वामी चिदानंदजी महाराज के प्रवेश ने यात्रियों में सुखद अनुभूति का संचार कर दिया। थोड़ी ही देर बाद प्रवेश किया स्वामी देवकीनन्‍दनजी महाराज ने और यात्रियों के भाग्य से, उन्हें विमान में छब्बीसवें क्रम पर पीछे की सीट मिली। वे आये तो विशेषकर महिलाएँ अपनी सीट से खड़ी होकर प्रणाम करने लगीं। महाराज ने भी सबका अभिवादन ‘राधे-राधे’ कहकर कर स्वीकार किया। सीट पर बैठते ही कहा कि जो-जो सिंहस्थ से आ रहे हैं वे हाथ ऊपर कर दें। फ्लाइट में सत्तर प्रतिशत लोगों के हाथ ऊपर थे। महाराज ने ‘वृन्दावन- बिहारी लाल की जय’ का घोष किया और यात्रियों ने समवेत स्वर में उसे दोहराया। इसके बाद तो यात्रियों में सिंहस्थ को लेकर चर्चाएँ आरंभ हो गईं। कोई महाकाल के दर्शन से प्रसन्‍न था, तो कोई अपने गुरू के साथ स्नान कर आनंदित था। इस वार्तालाप में सिंहस्थ की व्यवस्थाओं का उल्लेख स्वभाविक रूप से आ रहा था। कोई साफ-सफाई की व्यवस्था को सराह रहा था, तो कोई आई.टी. के उपयोग के कारण इसे आधुनिक सिंहस्थ कह रहा था। दिव्यांगों के लिये बनाये गये विशेष घाट, मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के संबोधनों में आध्यात्मिक अभिव्यक्ति, क्षिप्रा आरती की भव्यता और स्वामी चिदानंदजी तथा राज्य शासन द्वारा पर्यावरण, स्वच्छता तथा अन्य सामाजिक मुद्दों को महत्व देने, सिंहस्थ पर चर्चाएँ होती रहीं। लगभग सभी लोग सिंहस्थ की व्यवस्थाओं से संतुष्ट और प्रशासन की प्रशासनिक-प्रबंधकीय दक्षताओं से प्रभावित थे।जल्द ही दिल्ली आने का संकेत हो गया। विमान के रुकते ही यात्री दोनों स्वामीजी के साथ सेल्फी लेने और उनका आशीर्वाद पाने का प्रयत्न करते रहे। ‘सिंहस्थ के आनंद की जय’ के सामूहिक घोष के साथ यह यात्रा पूर्ण हुई।
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